मैं घाट पर पड़े पत्थर-सी..
तुम नदी की लहरों का उफान...-
चलते चलते सोचा थोड़े शब्द बिखेर दूं,किसी के जज़्बात बांध लूं और कुछ जज़... read more
मैंने अपनों को गैर होते देखा है
मोहब्बत को नफ़रत बनते देखा है
सूरज के उगने से उसका ढलना देखा है
मशीन को चलते चलते रुकते देखा है
बच्चे को भागते हुए बूढ़े को थकते देखा है
जीभ का बोलते बोलते लड़खड़ाना देखा है
अपने किस्सों को गैरों को कहते देखा है
हां शायद जीवन के एक- चौथाई हिस्से में मैंने सब कुछ देखा है..-
स्त्री का आकर्षण पुरुष को पुरुष बनाता है
और स्त्री का विकर्षण उसे गोतम बुद्ध||-
ज़िन्दगी भी मौत से बत्तर हो जाए,
अगर तू खुद का चित्र और चरित्र आइने में देख ले।-
अगर सिगरेट पीने से 'तुम्हारे' फेफड़े खराब हो रहें हैं,
तो फिर 'मेरा' चरित्र कैसे??-
जब आप अच्छे होते हैं, तो दूनिया अपका फायदा उठाती है
और जब बहुत ज्यादा अच्छे होते हैं तो आपके अपने|-
उसने तोहफे में कलम दिया..
शायद वो जानता था कि ,
मुझे मेरी आज़ादी सबसे प्रिय है|-
मनुष्य अपना स्वामी नहीं है, वह परिस्थितियों का दास है, विवश है|
वह कर्ता नहीं है,केवल साधन है|
फिर पुण्य और पाप कैसा?-