S. Saurabh N. Srivastava   (S Saurabh Srivastava ©)
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अभिव्यक्ति की लालसा, बहारों में खो जाने की चाहत
Joined 18 June 2020


अभिव्यक्ति की लालसा, बहारों में खो जाने की चाहत
Joined 18 June 2020
23 NOV 2024 AT 11:22

अक्सर यही सोचतीं हूं कि
क्या वह भी मुझे चाहता है
क्यों मुझे ही उसकी कमी खलती है
क्यों मेरा ही मन उदास है
अक्सर मेरा ही सवाल होता है
अक्सर उसका जवाब नहीं होता है
थम गयी वो प्यार की बारिश सा समां
जब बादल के मोहताज ना थे
ना जाने क्या कमी रह गई इश्क़ इकरार में
दिल दिया है बस जान बची है
उसके इन्तजार में इन्तजार में इन्तजार में

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15 SEP 2024 AT 14:11

तू इस कदर शामिल है हर ऐतबार में
जैसे नदियां घुलती है सागर में
तू हर सांस में ऐसी छाप छोड़ जाता है
जैसे दरिया चमकती है किरणों से

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2 SEP 2024 AT 11:46

अन्जान रास्तों पर
अक्सर पूछा जाता है
ये कहां जाती‌ है
मंजिल से बेखबर
रास्ते खुद ही
हाथ पकड़ लेते हैं।
साथ देते हैं
राही अपने रास्ते बदल लेता है।

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2 SEP 2024 AT 11:20

इतिहास
सड़क पर अक्सर ठोकर खाते देखा है
मिनारें पहचान की मोहताज‌ नहीं होती।

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2 SEP 2024 AT 11:12

आज बैठें हैं
पुरानी यादों के साथ
याद आए कुछ अनकहे
कुछ उलझे तकरार
काश कि उन्हें जाने दिया होता
बिखरे पन्नों को समेट लिया होता
तो आज बेशक
ये चांद और मैं अकेला ना होता।

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31 AUG 2024 AT 8:03

छिपी अनकही दिवारों को कौन भेद‌ पाया है
सामने से तो सब अच्छे होते हैं ।
उन तमाम गुनहगार यत्नों को कौन परख पाया है
सामने से तो सब अच्छे होते हैं।

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31 AUG 2024 AT 5:52

मसला यह नहीं उसने क्या किया
बल्कि यह था कि रिश्ते में सोचा कैसे?
मोहब्बत में इतना फिर बेखबर हुआ कैसे ?
क्या सच में मेरे जज़्बात ही गुनाहगार है?
हर छोटी-बड़ी बात के शुक्रगुजार थे,
नहीं नहीं रिश्ता हमारा एक तरफा था
यही वजह ही अब दरकिनार हैं।

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30 AUG 2024 AT 17:24

आत्मज्ञान,सम्मान,विश्वास विभत्सता भरी आंधी को चकनाचूर कर देता है,
जन सैलाब का मर्म तोड़ कर विनाश में झकझोर देता है,
वक्त,उम्र,फासले, उसूल जीवन के एक पड़ाव रह जाता है ,
जब ये एक शब्द अपने बाणों के तीर से घायल करता है ।

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30 AUG 2024 AT 7:51

एक नज़्म एक जख्म पे दो दिल फ़ना होते हैं,
जब फ़रिश्ते अपनी परछाई से रुबरु होते हैं।

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30 AUG 2024 AT 0:05

इन पुराने दरवाजों ने भी अपनी कहानी बयां की हैं,
कि जख्म बहुत है पर प्यार अभी भी सच्चा है ।

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