ख़ुद पर काम करते हैं... फिर आराम करते हैं... लगाकर अपना पूरा दिन... सुबह से शाम करते हैं... सब कुछ गंवा कर फिर... कुछ अपने नाम करते हैं... तारीफ उसकी ख़ुदसे की... ज़िक्र उसका सरे-आम करते हैं... ख़ुद से काम करते हैं... फिर आराम करते हैं।
जीने की अफ़रा-तफ़री में, रंगीन नज़ारे छूट गए! जिन ख़्वाबों का हिस्सा थी ज़िन्दगी, वह ख़्वाब बेचारे टूट गए! छोड़ दिए थे आसमान से रेस लगाने, वह गुब्बारे वक़्त से पहले फूट गए! मेरी कश्ती, मेरा पानी, मेरी शाम, मेरे किनारे देखो मुझसे रूठ गए!