हैरान हो.....कि क्यों हूँ खामोश मैं,
किसी की बहुत अजीज हो गई हूँ,
एक वही है दर्द मेरा और मर्ज भी,
कि अब उसी की मरीज हो गई हूँ,
इस तरह ना करो मुझे...दूर उससे,
कि बर्दाश्त की हद भी पार हो जाए,
और जब दर्द गुस्सा बनकर आए तो
कहते फिरोगे कि बदतमीज हो गई हूँ,-
जहन में इस कदर भर गया है दर्द,
कि रोने पर भी अब सुकून नहीं मिलता...
उम्मीदें इस तरह उधड़ गई हैं कि,
वक़्त और तसल्ली का दर्जी भी नहीं सिलता...-
आँखों नें तो संभाल लिया खुदको मगर,
तेरी यादों नें दिन और रात का लिहाज नहीं किया..-
तेरी जरुरत को लिखूं,तो ज़माने को लगती है बेचारगी,
ख़ामोशी भी छीन लेती है किस्मत,जारी है हर बेहूदगी,
तरस आता है कभी-कभी,मुझे खुद पर ही सनम,कि..
कैसे छुपाऊं..खोखला कर रही मुझे तेरी गैर मौजूदगी,-
हजारों झमेले लिए दिल में,सुकून के कुछ पल चाहती हूँ,
बता न मुझे तू........क्या मैं तुझसे कुछ ज्यादा चाहती हूँ,
कि तेरे बिना तो मेरी परछाई भी अजनबी है मेरे लिए....
तेरे क़दमों में पड़ी रहूँ श्रीराधे,अब तो बस यही चाहती हूँ,-
क्या बताऊँ हाल अपना,दिल में तेरा ही ख्याल है,
जवाब कुछ भी नहीं..खुद से ही लाखों सवाल है,
मेरे जख्मों पर चंदन की ठंडक सी है,तेरी बातें...
और तुझमें मेरा मौजूद होना जख्म है, कमाल है,-
रंगों से ऊब चुकी हूँ जिंदगी,अब सब सादा आये,
हिस्से में मिले श्री राधा,चाहे फिर जो बाधा आये,
शिकायतों की भाषा से अब,सरोकार नहीं मेरा..
भूल चुकी कि मेरे हिस्से,अँधेरे कुछ ज्यादा आये,-
विरह से तो कमतर ही है..आग की जलन,
जो बन गया मन,कट रहा उस बिन जीवन,
न रोना कभी,इस समर्पण की व्यथा को...
प्रेम में प्रेम से भी ऊँचा है, त्याग का चलन,-