S.Dablie sahu   (*D-art _poetry*)
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Joined 13 May 2020


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Joined 13 May 2020
7 MAY AT 0:09

यूं चादर ओढ़े, सो जाता हूं।
नींद आती है, सपनों में कहीं खो जाता हूं।
उठते ही सपनों को भूल जाता हूं।
मगर नींद में, बहुत मुस्कुराता हूँ।
उठते ही यह मुस्कुराहट, सपनों में छोड़ आता हूं।
सपने में ख़्वाब पूरे कर लेता हूं।
उठते ही जीवन की वास्तविकता में लौट आता हूं।

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6 MAY AT 23:57

अगर साथ कही ठहर पाते तो,
ये दुनिया न अड़चन बनती।
न रिश्तों में मजहब, न जात पात आते।

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6 MAY AT 23:27

ओ मुझसे, अब पहले जैसे, बातें नहीं करता हैं।
साल में, एक बार भी, याद नहीं करता हैं।
पहले दिन में, कई बार बात हो जाया करती थी।
अब कई दिन, महीने, साल यूं ही गुजर जाते है।
न ओ याद करता है, ना मैं बात करती हूं।
मगर मन वही ठहर गया है, जाने कितने सालों से।
अब मन को कोई, पसंद ही नहीं आता हैं।
जाने मोहब्बत थी या नहीं, अभी भी,
यह बात, समझ नहीं आता हैं।


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6 MAY AT 23:11

घर के बड़े बच्चे,
सदा बड़े होने का फर्ज अदा करते रह जाते है।
घर का छोटा सदैव फर्ज निभाते रह जाते है।
मगर इन सबमें, बीच वाले बच्चे कहां याद आते हैं।
हमेशा जिद्द करते करते बड़े हो जाते हैं
न कभी बड़े बन पाते है, ना छोटे बन पाते हैं।
बड़े को सम्मान, छोटे को प्यार
मगर बीच वाले कहा खो जाते है।
बड़े बच्चे पापा के लाडले, छोटे वाले मां के लाडले,
इन सब में बीच वाले, कहां किसी को याद आते हैं।
बीच वालों के हिस्से में केवल संघर्ष ही आते है।
बीच वाले को कहां कोई समझ पाते हैं।

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4 MAY AT 21:23

वो ज़ख्म बहुत गहरा होता हैं।
जो वफ़ात कि मिन्नतें करता हैं।।

कुछ ज़ख्म दिखाई नहीं देते हैं।
अंदर ही अंदर भावशून्य कर देता हैं।।




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3 MAY AT 12:20

यूं मन की वास्तविकताओं में,
बहना शुरू कर दिया हैं।
जहां जीतना जरूरी हो,
वहां उतना ही रहना शुरू कर दिया है।
अब नहीं रखता उम्मीद किसी से,
वक्त से ज्यादा अब वक्त देना छोड़ दिया हैं।

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1 MAY AT 0:21

एक शख़्स को, इतनी शिद्दत से चाहा,
फिर किसी की, चाहत की, ईक्षा ना जगी।
ओ शख्स भी था, अनपढ़,
थोड़ा भी, ना पढ़ सका, मेरा दिल।

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27 APR AT 20:31

कभी कभी हम समंदर से लड़ना सीख जाते हैं।
मगर नदियों से हार जाते है।

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25 APR AT 0:32

कभी शाम ढलते ढलते, आसमां बिखर जाते हैं।
तारों की चाहत में, उजालों का साथ छोड़ जाते हैं।
यूं शिद्दत से चाहत हो, तो राही, कहां मंजिल से, मिल पाते हैं।
अक्सर कुछ मोहब्बते, मन से शुरू, मन में ही दफ़न हो जाते हैं।
रूह से चाहने वाले, कहां, जीवन के, हमसफ़र बन पाते है।

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8 APR AT 14:04

मन के अंदर ही मौजूद होता हैं।
मन जब अपनी वास्तविक स्थिति में हों।
तब ही सुख का आभास होता है।

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