यूं चादर ओढ़े, सो जाता हूं।
नींद आती है, सपनों में कहीं खो जाता हूं।
उठते ही सपनों को भूल जाता हूं।
मगर नींद में, बहुत मुस्कुराता हूँ।
उठते ही यह मुस्कुराहट, सपनों में छोड़ आता हूं।
सपने में ख़्वाब पूरे कर लेता हूं।
उठते ही जीवन की वास्तविकता में लौट आता हूं।
-
कविताओं से कविवृंद।।
किसी से परिचय क्या पूछना।
जो लिखते हैं , निश्... read more
अगर साथ कही ठहर पाते तो,
ये दुनिया न अड़चन बनती।
न रिश्तों में मजहब, न जात पात आते।-
ओ मुझसे, अब पहले जैसे, बातें नहीं करता हैं।
साल में, एक बार भी, याद नहीं करता हैं।
पहले दिन में, कई बार बात हो जाया करती थी।
अब कई दिन, महीने, साल यूं ही गुजर जाते है।
न ओ याद करता है, ना मैं बात करती हूं।
मगर मन वही ठहर गया है, जाने कितने सालों से।
अब मन को कोई, पसंद ही नहीं आता हैं।
जाने मोहब्बत थी या नहीं, अभी भी,
यह बात, समझ नहीं आता हैं।
-
घर के बड़े बच्चे,
सदा बड़े होने का फर्ज अदा करते रह जाते है।
घर का छोटा सदैव फर्ज निभाते रह जाते है।
मगर इन सबमें, बीच वाले बच्चे कहां याद आते हैं।
हमेशा जिद्द करते करते बड़े हो जाते हैं
न कभी बड़े बन पाते है, ना छोटे बन पाते हैं।
बड़े को सम्मान, छोटे को प्यार
मगर बीच वाले कहा खो जाते है।
बड़े बच्चे पापा के लाडले, छोटे वाले मां के लाडले,
इन सब में बीच वाले, कहां किसी को याद आते हैं।
बीच वालों के हिस्से में केवल संघर्ष ही आते है।
बीच वाले को कहां कोई समझ पाते हैं।-
वो ज़ख्म बहुत गहरा होता हैं।
जो वफ़ात कि मिन्नतें करता हैं।।
कुछ ज़ख्म दिखाई नहीं देते हैं।
अंदर ही अंदर भावशून्य कर देता हैं।।
-
यूं मन की वास्तविकताओं में,
बहना शुरू कर दिया हैं।
जहां जीतना जरूरी हो,
वहां उतना ही रहना शुरू कर दिया है।
अब नहीं रखता उम्मीद किसी से,
वक्त से ज्यादा अब वक्त देना छोड़ दिया हैं।-
एक शख़्स को, इतनी शिद्दत से चाहा,
फिर किसी की, चाहत की, ईक्षा ना जगी।
ओ शख्स भी था, अनपढ़,
थोड़ा भी, ना पढ़ सका, मेरा दिल।
-
कभी शाम ढलते ढलते, आसमां बिखर जाते हैं।
तारों की चाहत में, उजालों का साथ छोड़ जाते हैं।
यूं शिद्दत से चाहत हो, तो राही, कहां मंजिल से, मिल पाते हैं।
अक्सर कुछ मोहब्बते, मन से शुरू, मन में ही दफ़न हो जाते हैं।
रूह से चाहने वाले, कहां, जीवन के, हमसफ़र बन पाते है।
-
मन के अंदर ही मौजूद होता हैं।
मन जब अपनी वास्तविक स्थिति में हों।
तब ही सुख का आभास होता है।-