यूं ही तकता, चांद को, रात भर,
कब सूरज की किरणे, आंखो को छू गया,
पता ही ना चला।
समय, गुजरता ही चला गया।
कब इतने साल, बीत गए, पता ही ना चला।
दुनियां देखने की, आस जगाएं मन में, बरसों से।
कब एक कमरा ही, दुनियां बन गया, पता ही ना चला।
समय चलता रहा, सफर चलती रही।
जिंदगी बदलती रही, बस ये ज़िद्द ही ठहरी रही।
हर दिन नए कल की चिंता, हर दिन बीते कल का बोझ।
कब आज, कल बनकर निकल गया, पता ही ना चला।
बोझ से भरा मन, उदास हो कर, बिखर गया।
मगर जीने की आस, हौसला का दामन, थामे रखा।
अंधेरा आज फिर आ गई, कल चाहे, जो भी हो, जीवन में।
कल फिर बेहतरीन होगा, मन ने कहा, फिर एक बार मुझसे।
सब कुछ बदलेगा, एक दिन, खुद को बस, थामे रख।
ये ज़िद्द है, ज़िद्द ही सही,चाहे जो हो,
अधूरा सफर छोड़ कर, मुझे कही जाना नहीं।-
कविताओं से कविवृंद।।
किसी से परिचय क्या पूछना।
जो लिखते हैं , निश्... read more
थोड़ा वक्त बुरा क्या हुआ, लोग सीख देना शुरू कर दिए ।
थोड़ा सहयोग क्या किए, मरने से ज्यादा एहसान गिना दिए।
सब भूल गए वक्त अपने, किन हदों तक साथ दिए मैंने।
साथ देने का वक्त आया, थोड़ा वक्त भी कम पड़ गए उनके।
साथ चलेंगे जीवन भर,भरोसा किया था जिनपे।
ओ खुशियों में मेरे आगे, और दुःख में सबसे पीछे रहे।
जरूरत पड़ी जब उन अपनों की, ओ अपने अपने भी ना रहे।
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आजकल के रिश्ते परखने बहुत आसान हो गए है।
मोबाइल में थोड़ा झांक कर देखो,
चैट और कॉल लिस्ट में, कितने रह गए है।
कौन हमे कितना, अपना समझता हैं।
ज्यादा दूर जाने की, जरूरत नहीं।
बस फेसबुक, इंस्ट्रा में किए पोस्ट में, देखे,
लाइक कमेंट कितने रह गए है।
दोस्ती से भरे रिश्ते, अब मेंशन से सच्चे लगते है।
और न दिखे जो मेंशन में, दोस्ती कच्चे रहते हैं।
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"एक कोशिश जीने की"
(१)
डर लगता है, अब मुझे जीने से
अब मरना, शादी से, आसान लगता है।
ये खेल है, सबके लिए,
मगर सारे बोझ, मेरे मन को, चुकाना पढ़ता हैं।
चुभता है, हर एक शख्स की बात,
दिल को, एक गहरा, ज़ख्म दे जाता हैं।
डर लगता है, इन सबमें खुद को, कही खो ना दूं।
ये बंजर मन, किसी का, होना नही चाहता हैं।
जब तक, काबिल ना हों जाऊं,
एक कदम आगे, बढ़ाना नही, चाहता मैं,
सबकी बात का वजूद रखते रखते,
खुद का वजूद, कही खो ना जाऊं,
जीवन के इस पढ़ाव में, कही हार ना जाऊं।
यह अंतिम कोशिश है, जीने मरने की।
कही मैं खुद के लिए मजाक ना बन जाऊं।
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बस अपनी नजरो में साफ रहो।
किसी को खटक रहा है, तो खटकने दो।।
कोई गलत समझ रहा है, समझने दो।
बस अपना दिल साफ रखो।।
जिसको जो राय देनी है, देने दो।
जो खुद को सही लगे, बस वही करो।।
जिसको जो फैसला लेना है, लेने दो।
बस अपनी जिंदगी की चाबी अपने हाथ में रखो।।
किसी के लिए, दिल में नाराजगी मत रखो।
माफ़ करो, और आगे बढ़ो।।
जिंदगी से थक कर हार गए हो।
मरने की मत सोचो, जीने की वजह ढूंढो।।
कोई साथ नही दे रहा, कोई बात नहीं।
खुद का हाथ थाम खुद के साथ चलों।।
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धीरे धीरे समझ आ रहा, क्या अहमियत है।
अपनों की नजरो में हमारी।
सबकी नजर में क्या सोच है हमारी।
यू ही सबको खुदा से अजीज़ समझ बैठा था।
वक्त आने पर सबने बताया क्या अहमियत है हमारी।
वक्त अच्छा तो सब अच्छे होते हैं।
वक्त बदलता है, तो हम ही बोझ बन जाते हैं।
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यू दूर रहने लगा हूं, हर उस अपने से।
जो मुझे अपना समझता नही।
सब अपने तो दिखते है, पर हर कोई अपना नहीं।
यू अपनी नजरों से मुझे गिरा हुआ मत समझो।
ये भी तो देखो , ऐसा करते हुए,
तुम मेरी नज़रों से गिर रहे हो ।
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समय के आगोश में, सब कुछ बह जाती हैं।
ना कुछ बचता है, ना कुछ ठहरता हैं।
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ये दिल नफरतों से, कही आगे पहुंच चुका हैं।
जहां कोई भी, अब गलत नहीं लगता हैं।
सब अपने हिसाब से ही, जी रहे है यहां ज़िंदगी।
जो दूसरों के लिए जी रहे , बस वही यहां हैं बुरे।
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बेटे सदा मां बाप के अपने रहे ।
बेटियां सदा ही परायी रही।
पीढ़ियों ने संभाला है, मर कर भी, बेटों को।
बोझ तो सदा से, बेटियां ही रही।
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