बैठा रहा
किताबों में लिखा था कहर बरसेगा,
मैं नासमझ अल्फाजों में उलझा रहा,
प्रेम इश्क मोहब्बत सब सिलसिले सच्चे थे,
मैं झूठी दिलासा में दिखता रहा।
घाव दिखे तो दवा लगा देता शिफा को,
मैं बस बातों में बात छुपाता ही मिला,
मुझे मिली नहीं जो मेरी मिल्कियत थी,
मैं दूजे के जर जमीं में उलझा रहा।
वक्त आएगा मेरा मुझे इसका इल्म है,
मैं दराबो में दुबका बैठा रहा,
अल्लाह की रहमत से बारिश हुई,
मैं बस समाजों से दूर भीगता रहा।
हाथ बढ़ाता तो मेरे नसीब में हो जाता,
मैं मुट्ठी बांध के बस चिता पे लेटा रहा,
जो जिंदा थे वो लूट गए रौशनी आसमानों की,
मैं नशे में धूत अग्नि पे बैठा रहा।-
जिसने भी मुस्कुरा के देखा उनसे ही जुड़ गया... read more
दर्द का दरिया पार कर के सुकून मिला है,
अब मरहम की रहम मैं क्या करूंगा,
इत्र की खुशबू पसंद नहीं उबलते तेल में झुलसा दो
जन्नत रास न आई मुझे दोजख दुबारा दिलादो।
पांव घिस गए घुटनों तक चलते चलते,
अब जूतों का क्या मोल करूंगा,
डूब गया मैं साहिल पे पहुंचते पहुंचते,
किनारा मिला तो चिता जलाने को मोल करूंगा।
कितनी ही ज़ख्म जिह्वा ने चखा है कौन जाने,
अपनी साख आंगन की बचाना है,
कौन आएगा मरघट को जग तर के पार कराने,
बस झुलसती दरिया में जाना है।
छू लेते तो दर्द बन कर आंखों को मेरी,
चुप चाप ख्वाबों में आ जाया करते हो,
लोग कहते है कमबख्त दूरी बहुत है,
फिर भी रोज मुलाकात तुम करते हो।
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मेरे हक में मुकद्दर ने किसे तय किया है,
सबने बांट बांट कर मुझे तनहा कर दिया है।
हर दर पर मैने मकां बनाया और बसाया है,
पर हर गली ने मुझे अनजान कर दिया है।
सम्राट साम्राज्य समेट कर मजदूर हो गया है,
जिसने जैसे इस्तेमाल किया उसने वैसा कर दिया है।
मोहब्बत सुना था कि टूट के होती है किसी से,
यहां तो मोहब्बत ने ही मुझे तोड़ दिया है।
किसी के लिए कितना भी करो कम ही पड़ जाता है,
साथ होंगे जब सांस न होगी आज है तो साथ छोड़ दिया है।
मेरा मैं आज मुझसे पूछता है कई बार,
मैं में मैं हूं या फिर मैं ने मेरा साथ छोड़ दिया है।
मुझसे इश्क किसको है कौन परवाह करे मेरी,
जिस घर को अपने समझा उसने मुझे ठुकरा दिया है।
चल सीख ले कि कैसे खुद के आंसू पोंछे जाते है,
की अपनों ने ही तो रुलाना शुरू कर दिया है।
एक मैं हु और मेरी वीरानियां जिंदा है कब्रों में भी,
वरना लोगों ने तो बातों तले दफनाना शुरू कर दिया है।-
प्रेम और मैं
अब मैने सतना बंद कर दिया,
अपने हो ये बताना बंद कर दिया,
प्रेम होगा अगर हुआ कभी तो,
बस औचारिकता निभाना बंद कर दिया।
अब तुझसे लड़ने झगड़ने में वो कशिश नहीं,
ना तुझसे दूर होने की मुझसे मजलिश नहीं,
तू कह दे तो चांद रख दूंगा जमीं पर,
मुझे जमीं से फलक तक जाने की ख़ाहिश नहीं।
मैं प्रेम लुटाऊंगा तू जितना चाहे बटोर ले,
पर अब प्रेमी बनने की चाहत नहीं है,
तू कहे तो मैं दिन कहूं तू कहे तो रात कहूं,
तुझसे प्रेम पाने की अब कोई आहट नहीं है।
ये नोक झोंक तुझे क्या समझ आएगा,
बेशक तेरा आंतरिक विश्वास जीत जाएगा,
पर तू जीत कर भी हार ही मानेगा,
तू मुझे जीत जाएगा पर प्रेम हार जाएगा।-
शिक्षक
थाम के उंगली मुझे चलना सिखाया,
गोद में बिठा का खाना खाने को बताया,
एक सलाम मेरी पहली शिक्षिका के नाम,
गर्भ से निकाल कर मुझे मां से मिलाया।
कंधों पर जिसने मेरे ख्वाब रखा है,
खुद टूट कर मेरा नूर आबाद रखा है,
जिनकी चरणों पर मैं ताज तक रख दूंगा,
पिता के रूप में मैने अपना भगवान रखा है।
जीवन की कठिन राहों पर चलने का हुनर पाया है,
मंजिल की राहों का परिचय जिस से पाया है,
शुक्रगुजार हूं जिसने मुझे हरी से मिलाया है,
वरदान रूप में मैने शिक्षक को पाया है।
ऐ जिंदगी कुछ तजुर्बे तेरी आंखों से भी मिले है,
कईं खुशियां खिली तो ग़मों के कईं गिले है,
मुझको मुझसे मिलाने वाली तेरी कोशिश भी कमाल है,
शिक्षक मुझे कईं रत्नों में जड़े मिले है।-
जिम्मेदारी निभा रहा हूं
मैं चुप रहकर बोले जा रहा हूं,
शांत सूरत से शतरंज सिख रहा हूं,
सबके लिए मैं जरिया निकला,
मैं सबमें होने की जिम्मेदारी निभा रहा हूं।
सब चोट कर के तोड़ेंगे तुझे,
हाथ पकड़ छोड़ेंगे तुझे,
सब अपने है ये बस छलावा रहेगा,
मैं इसी माया में मिथ्या निभा रहा हूं,
सबमें होने की जिम्मेदारी निभा रहा हूं।
मजबूरी बस कोई न पूछ ले मुझसे,
मजदूरी पर निकल जाया करता हूं,
बेगारी जिंदगी है सुकून कहां रहेगा,
मैं इसी बंदोबस्ती का जाम लगा रहा हूं,
सबके होने की सजा निभा रहा हूं।
गुनाह बहुत हुए होंगे मुझसे खुदा नहीं हूं,
घर मेरा नहीं और मेहमां भी नहीं हूं,
फिर भी सबकी तानों के दंश खा रहा हूं,
मैं सबकी सोच के बोझ उठा रहा हूं,
सबके होने की सजा निभा रहा हूं।-
एक गुब्बारा चाहतों का चाहिए,
चांद भी अपने ख्वाहिशों का चाहिए,
है मुमकिन नहीं खुशियां अपनी हो,
ग़म भी तो थोड़े सीमित ही चाहिए,
रात ढल गई सपनों की तो क्या,
हकीकत तो बस अपनों का ही चाहिए।-
आजादी
एक पक्षी पंख पसारे पिंजरे में था,
बरसों से खुले आसमान में उड़ने को था,
कितने खरोच जिसमें पर मिले फड़फड़ाने में,
मन में तो सोच आजाद फलक पर जाने को था।
लड़ता सर पटकता उड़ने के कोशिश करता है,
बेजुबान कमर कस कर चिल्लाया करता है,
मुद्दत से थी कोशिश आसमान में उड़ने की,
कनक तीलियों से टकरा कर मन घायल करता है।
कोशिश पुरजोर की उसने उड़ने की,
साहस देख खुदा ने बख्शीस दी,
तोड़ कर पिंजड़ा वो उड़ चला आकाश तक,
मुड़ कर देखे वो जंजीर भरे पिंजड़े की।
लम्हों से थी चाहत आजादी की,
चोंच मारती छीलते तलवों की,
पर किस्मत तो देखो बेजुबान की,
जब आजादी मिली तो पिंजड़े से मोहब्बत थी।-
एक खंजर छुपा के रखा है,
सबकी नजरों से बचा के रखा है,
कभी काम आए तो निकाल लेना,
मैने अपने सीने में घुसा के रखा है।
की मौसम की बेवफाई का सबको इल्म है,
पर इश्क के मकान में किराया चाहिए,
किसकी मिल्कियत कितनी है कौन तय करेगा,
बंटवारा सबको ही बराबर चाहिए।
शहर के बाहर ये लिखवा दो,
की शमशानों में वीरानियां है,
महफिलों में सब मुर्दे ही मिलेंगे,
जिंदा तो बस ये बची कहानियां हैं ।
अपनों की नजरों ने मुजरिम करार कर दिया,
बेगुनाही को अब शब्द क्या ही बयान करूं,
कभी शांत हो पानी तो आईना देख लेना,
अभी नहर भर बवंडर है तो मन शांत धरूं।-