S. Bhaskar   (भारतीय सम्राट)
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Joined 28 July 2018


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YESTERDAY AT 0:16

बेटी हूं इसलिए चुप रहती हूं,

मर्यादा घर की खुद में समेट लेती हूं,
अपनी ख्वाहिशों का गला रेत लेती हूं,
कहीं उठ न जाए कोई मुट्ठी मुझपर,
बेटी हूं इसीलिए चुप रहती हूं।

मुझसे लिपट गई गैर की अस्मत,
सुहाग सिंदूर और गैर का छत,
वहां भी खुशियां बिखेर देती हूं,
कहीं खटास ना आ जाए बोलने से मेरे,
बेटी हूं इसीलिए चुप रहती हूं।

मुझे रोका टोका जाए तो संभल जाती हूं,
बड़ी या छोटी हूं पर मर्यादित रख जाती हूं,
समाज का आइना प्रकाशित कर जाती हूं,
कहीं मन का ताप ना खंडित कर दे,
इसीलिए बेटी हूं इसीलिए चुप रहती हूं।

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18 APR AT 22:16

ऐ मन क्यों इस बार दुखा है,
बेवजह बातों में क्या रखा है,
सुन ले तू इसबार पहली दफा,
इश्क तो है बस आखिरी सजा।

जब से टूटा है ये मन मेरा,
मिले न कहीं इसको बसेरा,
मिल भी गया तो कदम आखिरी होगा,
की सुन ले .........

पहली बार देखा है मुख सलोना,
सुन लो कुछ तुम भी कहो ना,
की वक्त मिल भी गया तो आखिरी होगा,
की सुन ले............

जिन राहों पर बिखरा था तू,
क्यों मैं आज तुझको समेटूं,
की फिर से मिल गया तो धोखा ही होगा,
की सुन ले........

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18 APR AT 5:51

सुन्न सन्नाटे की गोद में,
दिन दिनकर की चोट में,
समझौते करते खयालात,
बात नही करती है रात।

एक तारा इंतजार में,
उलझा झूठे संसार में,
प्रेम करता झूठा मिलाप,
वक्त नहीं देती है रात।

ललाट सुनी रह जाती है,
ख्वाहिश अधूरी रह जाती है,
आलिंगन में लिपटा अभिशाप,
सुनती नही है रात।

वक्त बेचैन रहा करता है,
ध्यान मगन कहां रहता है,
सो जाती है उमंगे चुप चाप,
बात नही करती है रात।

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13 APR AT 9:49

इंसान हैवान

राह का कंकर चट्टान बन गया,
मन बेवजह महान बन गया,
पत्थर भी जान लेके इंसान बन गया,
और मानव भी हैवान बन गया।

चोट का जख्म नासूर हो गया,
मनुष्य भी चख कर असुर हो गया,
जो शांत था वो मगरुर हो गया,
इंसान हैवान हो गया।

लगी जख्म जब चित्त पर हिय के,
चेतन मन जल गया लॉ से दिए के,
सोते जख्म में सुलगते जिए के,
हैवान बना मनुष्य जीवन जी के।

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7 APR AT 22:21

सब सह जाते है

मुझमें मैं नही सब आते है,
जो नही कहना कह जाते है,
किसी किनारे पर मिलेंगे,
ये सोच सब सह जाते है।

वक्त वक्त पर मिलता है,
घड़ियां कांटों पर चलता है,
किसी वक्त वक्त भी मिलेगा,
यही सोच में वक्त चलता है।

भास्कर रौशन है बदली में भी,
पुचकारता मन पागल मेघ भी,
चंदा ओट भी मांगेगा मुझसे,
ये सोच है पवन पावन भी।

सीप मोती ढूंढ कर लाते है,
ओस मुस्कान भी पा जाते है,
साहिल के छोर मिल ही जायेंगे,
ये सोच सब सह जाते है।

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2 APR AT 6:56

तुमको सब मुबारक ही लगेगा,
जहन पर कांटे सब उठा लेंगे,

कह दो एकबार स्वर्ण की ख्वाहिश,
हम पारस चुरा कर दिखा देंगे।

बालों में संवारने को तुम्हारे,
कोहिनूर सजा कर दिखा देंगे।

तुम कहो तो एक बार ही सही,
हम सच को झूठ मान लेंगे।

हो तरकश में बाकी तीर तो चला दो,
निशाना चुका भी तो जान दे देंगे।

फिर भी कसर कोई रह जाए मन में,
हम अपनी कब्र में बारूद जला देंगे।

तुम कह कर तो देखो एक मरतबा,
हम खुद को दोजख से निकाल लायेंगे।

फिर भी गर आपका मन कहीं दुखा हमसे,
मेरी जान तुमको जन्नत से दोजख में विदाई देंगे।

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2 APR AT 6:41

यादें जख्म मरहम है

वो सुना सा वृक्ष धरा पर है,
जिसका सुकून कहां पर है,
जिसके पत्ते साथ नही देते,
पर फूल लगे शाखा पर है।

जब हमे छोड़ गए लोग,
सुलगते एहसास तोड़ गए लोग,
बस उनकी बातें शर्मिंदा है,
केवल यादें ही तो जिंदा है।

सड़क के किनारे मैं खड़ा रहा,
रास्तों पे नजरें गड़ाया रहा,
पर सबने झकझोर दिया हाथ,
मैं मायूस हो देखता ही रहा।

अब तो बस अंगीठी में आग है,
जलता लम्हा बचा राख है,
जिनसे आहत और राहत है,
वो यादें जख्म और मरहम है।

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31 MAR AT 23:43

ये रास्ते मंजिल को मिले

थी थोड़ी दूरी मानता हूं,
मजबूरियों को भी जानता हूं,
चांद तू मैं भास्कर पहचानता हूं,
फलक जमीं का मिलन छानता हूं।

है सुबह तो रात भी यही है,
सफर का मंजिल भी यही है,
तुझे आदित्य तपिश सताती है,
मुझे निशा दिशा दिखाती है।

पटरी पर सवारी सौदा करती है,
गलियां घर को ही निकलती है,
बस चलते रहे यूंही ये सिलसिले,
ये रास्ते मंजिल को मिले।

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21 MAR AT 7:09

पुल बन गया

दो छोर जोड़ दिया एक पुल ने,
नदी सहमी सी सब देखती है।

मुझे तुमसे मिलने में वक्त लगा,
पुल तो अब जा कर बना है।

दूरी तो साहिल को मुकर्रर थी,
ये कैसे पाबंद लग गया।

नीर शांत है तो रास्ता जिंदा है,
लहरों में कैसा प्रतिबंध लग गया।

तूफान की आहट है डर शामिल है,
कब ये बंधी हुई सतह खुल गया।

मुझसे मैं नही मिल पाया तो क्या,
तुझसे मैं तो मिल ही गया।

ये पुल जो है एक चाह है,
जो तेरे मेरे दरमियान बन गया।

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20 MAR AT 20:17

रास्ते नही मंजिल चला करती है,
हर कदम कही और बढ़ा करती है,
तुम अगर मंजिल बन जाओ एक बार,
तो मन ये रास्ता इख्तियार करती है,
इसी पथ पर मुझे कहानियां मिलती है,
कीचड़ में ही तो कमल खिलती है,
जो गुजरे इस गली से एकबार,
उसे निर्वाण के द्वार मिलती है।

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