छुप कर न रह सकेगा वो हम से कि उस को हम
पहचान लेंगे उस की किसी इक अदा से भी-
जैसे कोई रोता है गले प्यार से लग कर
कल रात मैं रोया तिरी दीवार से लग कर-
कुछ ऐसा था गुमरही का साया
अपना ही पता न हम ने पाया
दिल किस के जमाल में हुआ गुम
अक्सर ये ख़याल ही न आया
हम तो तिरे ज़िक्र का हुए जुज़्व
तू ने हमें किस तरह भुलाया
उफ़्ताद है सब की अपनी अपनी
किस ने है किसी का ग़म बटाया
हर ग़म पे है मेरे नाम की महर
'फ़ितरत' कोई ग़म नहीं पराया
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मैं सोचता हूँ इक नज़्म लिखूँ
लेकिन इस में क्या बात कहूँ
इक बात में भी सौ बातें हैं
कहीं जीतें हैं कहीं मातें हैं
दिल कहता है मैं सुनता हूँ
मन-माने फूल यूँ चुनता हूँ
जब मात हो मुझ को चुप न रहूँ
और जीत जो हो दर्राना कहूँ
पल के पल में इक नज़्म लिखूँ
लेकिन इस में क्या बात कहूँ
जब यूँ उलझन बढ़ जाती है
तब ध्यान की देवी आती है
अक्सर तो वो चुप ही रहती है
कहती है तो इतना कहती है
क्यूँ सोचते हो इक नज़्म लिखो
क्यूँ अपने दिल की बात कहो
बेहतर तो यही है चुप ही रहो..🤫-
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
तब मैं ने अपने दिल में लाखों ख़याल बाँधे-
वो उट्ठे हैं तेवर बदलते हुए..
चलो देखें तलवार चलते हुए..!!
हैं क्या उन की ज़ुल्फ़ें ये ऐ दिल न पूछ..
छलावे को देखा है छलते हुए..!!
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नज़रें झुकी सवाल पे मेरे जवाब में..
क्या क्या न कह गई है निगाहें हिजाब में..!!
ये ताज़गी ये रंग भी आया कहाँ से है..
काँटों का ख़ून ही तो है शायद गुलाब में..!!-
ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानी
मेरी ख़ैरियत भी पूछी किसी और की ज़बानी-
हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे..
अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ..!!-