थी गलतियांँ बारी बारी
मगर पड़ी हम पे बड़ी भारी
खामियाजा भूगते रिश्ते हमारे
चारों तरफ सिसकियांँ गूंजी काली काली
थोड़ा तुम करते थोड़ा मैं
जो बसाया था संसार बेशक बच जाती
अना सर चढ़ के बोला कुछ मेरी कुछ तुम्हारी-
तुम्हारे दिल में मेरे लिए जो प्यार था आज तुम्हारे दोहरे अवतार को बंटते प्यार को बढ़ती ज़िम्मेदारियों के आगाश को सलाम
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बल्ब सी जल रही जिंदगी
हम पतंगे की तरह बस अपने
वक्त के इंतजार में कब जल जाए-
हिकायत-ए-जिक्र मेरी हर महफिल में हुआ
कमबख्त
कुछ अच्छा कुछ बुरा मगर हर तरफ मैं ही रहा-
रात की अंधियारी करे कत्ल हमारी
गुमसुम बैठी किनारे पर
नैन तकती जाए चंदनिया प्यारी
शीतल शीतल बहती बयार
लूभाती तन मन को हमारी
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दामन में छुपा ले रात मुझे
जिंदगी में संघर्षों की उष्णता से
तन मन जला चुका हूं
कुछ मत दे जीने की आस मुझे
जिंदगी की खुरदरी पगडंडियों में बहुत रो चुका हूं
दम तोड़ती मेरी उम्मीदें कि हर रात
के बाद सुबह होती है मेरी जहन से भूला चुका हूं
अपने आप से नज़र नहीं मिल पा रहा हूं
कितना थक गया हूं कायरता भारी
व्यक्तित्व को दामन में छुपा ले रात मुझे-
एक दूजे के साथ के लिए दुआएं भी मांग बैठे हैं
बस मुकम्मल के इंतजार में रब पे एतबार कर बैठे हैं-