सुनहरे कल की खातिर,
हमारा आज चुप है !
दफन सीने मे है जो,
वही तो राज चुप है!
ये लब ख़ामोश क्यूँ हैं,
बताएं किस तरह हम!
पाया है जो ठोकरों मे,
बस वही आवाज चुप है..!!-
मै अपने मम्मी पापा को शब्दों में लिख सकू,
इतनी मेरी औकात नहीं..क्युकी,
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यूं तो जिंदगी में बहुत कुछ पा चुका हूं,
गुल्लक भरने भर का पैसा भी कमा चुका हूं।
फिर भी जिंदगी में कुछ ना कुछ कमी सी है,
हर वक्त आंखो में बसने वाली नमी सी है।
सूरज के निकलने से ढलने तक का जो वक्त है,
ना जाने मेरे लिए इतना ज्यादा क्यों सख्त है।
दिनभर तिगड़म करके वक्त तो थम लेता हूं,
पर अधूरी नींद में किसी अपने का नाम लेता हूं।
अकेला नहीं हूं फिर भी अकेलापन साथ रहता है,
फिसल सब जाता है पर अधूरापन हाथ रहता है।
कभी - कभी खुद के सपनों को लेकर उलझ जाता हूं,
घर के सन्नाटे को देख कर मुरझा जाता हूं।
अरे! कोई तो हो जो सपनों के दरवाजे की घंटी बजाए,
कोई तो हो जो मेरे बिखरे ख्वाहिशों को सजाएं।
ये कहकर हर रोज मै खुद से ही थक सा जाता हूं,
कमरे की बत्ती बंद कर ख़ामोशी के साथ सो जाता हूं।-
आज मेरे पापा ने मुझसे पूछा कि,
जिन दोस्तो के लिए तू घर से सारा दिन गायब रहता था,
क्या हुआ उनसे बात नहीं होती क्या तुम्हारी..?
मै क्या बोलता..! बस बोलती बंद हो गई हमारी...-
अब हम भी ख़ामोश होकर तेरा सब्र आजमाएंगे,
देखते है अब हम कब तुझे याद आएंगे...!-
सारी उलझनों को समेटे, मेरा मन करता है आगाज...
वहीं माघ मेला, वहीं प्रयागराज....-
वोट बैंक के आगे हारा तेज दिमाग बेचारे का,
आरक्षण ने गला घोंटा परिवार के अकेले सहारे का...-
कुछ तो शराफत सीख ले, ऐ इश्क़ शराब से………..!!
बोतल पे लिखा तो होता है, मैं जानलेवा हूँ………….!!-
हमें लिखने दो कहानीयां बहते पानी मे,
ये बेवकूफियां हमे अजीज है दोस्त...-
सौदागर तो मिले कोई मददगार न मिला,
दर्द यादगार तो मिले पर कोई खरीददार न मिला।
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धूप में निकालो घटाओ में नहा कर देखो,
जिंदगी क्या है किताबो को हटा कर देखो...!
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