रवि प्रकाश   (रवि)
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Joined 22 June 2020


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4 MAY 2024 AT 17:29

नफरती शोर बरबस आसमां में टूट जाए,
और ज़ेहन में दिया बस प्रेम का ही जगमगाए।
एक बारिश राम तुम ऐसी करो संसार पर,
द्वेष के सब आग बुझे, प्रेम से सब भींग जाएं।।

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4 NOV 2023 AT 21:44

मैंने पिरोये मोती,
तेरे यादों के।
मैंने बहाये सबनम,
तेरे यादों मे।
मैंने जलाया चाँद,
तेरे तसव्वुर का।
मैंने जगाई रात,
तेरे तसव्वुर मे।
तेरे एहसास को मैंने,
अपनी जेहन में बसा लिया।
मैंने मोहब्बत को मेरी जान,
यादों मे मुकम्मल किया।
वरना तेरे जाने के बाद,
ये मोहब्बत अधूरी रहती।
वरना तेरे जाने के बाद,
वो मुलाकात अधूरी रहती।

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22 OCT 2023 AT 15:43

क्षण क्षण परिवर्तन,
विकारों और भावों का आवागमन,
कल से कुंठित,
कल को विचलित,
नित्योन्मादी मन।
घटते जीवन की घटनाओं,
का बढ़ता वजन।
खो रहा अंतर का तत्व,
बहू-परती आवरण।
अहम का सतत निर्माण,
पर तत्व का नित-विघटन।
जीवन है अवसर,
इसे यूं न बर्बाद करो।
साधो परम-सूत्र को, हे साक्षी।
अब आत्मा का ध्यान करो।

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2 APR 2022 AT 20:34

तेरी ही कश्ती ने ईश्वर,
तेरी दी हस्ती को डुबोया है।
खुद को हासिल करने की कोशिश में,
मैंने खुद को ही खोया है।

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2 APR 2022 AT 11:16

मुझे चाहिए नहीं तुम्हारे लहू लगे हाथों का साथ,
मेरी पीड़ा मैंने जानी, मुझको कहने दो मेरी बात।

दर्द यह हमने पाला है, है हथियारों का घात सहा।
जिस नफ़रत ने मारा हमको, उस नफ़रत का बाजार लगा।
तुम बीज घृणा के बोते हो, क्या दिलवाओगे न्याय भ्रात?
मेरी पीड़ा मैंने जानी, मुझको कहने दो मेरी बात।

वो भूल गए थे, दिवाली के दिए जो संग जलाए थे।
होली के रंग भुलाकर के, गोली के जद में आए थे।
क्या सेवइयां हैं याद तुम्हें, या बस रटते हो लव जेहाद?
मेरी पीड़ा मैंने जानी, मुझको कहने दो मेरी बात।

जो अधर्म हमने झेला, बुनियाद धर्म ने डाला था।
वही कट्टरता पनप रही, जिसने बेघर कर डाला था।
फर्क कहां दिखती तुमको शासन-नीति तब की और आज?
मेरी पीड़ा मैंने जानी, मुझको कहने दो मेरी बात।

कुछ बहकावों में आए थे, झूठी अफवाहों में आए थे।
उनके बहुमत के नारों में, हम गद्दारों में आए थे।
जब अफवाह वही, जब वही शोर, कैसे भर दोगे मेरे घाव?
मेरी पीड़ा मैंने जानी, मुझको कहने दो मेरी बात।

इतिहास गवाही देता है, हर मौत गवाही देती है।
नफ़रत की आग में मानवता की चीख सुनाई देती है,
मत घी डालो, रोको इनको। मन में लाना जब करुण भाव,
मेरी बातें तब तुम कहना, रखकर मेरे कांधे पे हाथ।

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13 MAR 2022 AT 10:33

जिसकी चांदनी के क़ायल सभी इंसान हैं,
उसे दाग़ का भी गुरूर होना चाहिए।
अपनी खुबियां लूट जाती हैं बाज़ार में,
हम में ऐब भी ज़रूर होना चाहिए।

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8 FEB 2022 AT 6:59

किरण नहीं फूटी, आँख खुल आई।
रात जगी गुजरी, नींद नहीं आई।

सपनों में रहा, हक़ीक़त का दख़ल।
रहा साथ अधूरा, अधूरी तन्हाई।

ना दिखा सूरज, ना दीदार-ए-चाँद,
कारी बदरी लाया, पवन हरज़ाई।

दिल की बात कहें, अब शऊर नहीं।
क्या आलाप करे, टूटी शहनाई।

जो हुआ, रहकर उसी के कैद में दिल,
बस देख रहा ज़ख्म, लहू की लालाई।— % &

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29 JAN 2022 AT 0:34

सब कुछ गंवाकर भी,
ये लगता है, कि सबकुछ पा लिया है।
जंजीरों के जज़ीरों से निकलकर,
लगा ज्यूं बहर - ए - आज़म पा लिया है।

मैं सूरज, चांद को ठुकरा के खुश हूं।
तुझे पा आसमां को पा लिया है।— % &

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26 JUL 2020 AT 13:17


।। अच्छा तुम लिखते हो ।।

क्यों हृदय पे पत्थर रख, कुण्ठित तुम बैठे हो?
बंधु, कलम उठाओ! अच्छा तुम लिखते हो।

मन हमेशा, उड़ता आजाद विहग नहीं होता।
कभी कभी चोट से, रक्त-स्राव होता है।
अवसाद भी है पक्ष एक, बहुरंगी दुनिया का।
नहीं यह उन्माद सिर्फ, आशा और खुशियों का।

खुल के अभिव्यक्त करो, क्यों छिपाये फिरते हो?
बंधु, कलम उठाओ! अच्छा तुम लिखते हो।

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24 JUL 2020 AT 20:27

।। प्रेम का मुझको रोग न दे।।

कहां चाहता है मन मेरा, जो तू इतनी प्रीत करे।
मेरा मन बैरागी पगली, तेरा ये अनुराग, हरे।

कहाँ जानता तेरा मन भी, तू ज्योती बन जाएगी।
जीवन-तम में उजियारे की तू ही आस रह जाएगी ।

क्या है भरोसा अविदित कल का, कैसे दिन दिखलाएगी?
होगा कठिन डगर जीवन का, जब तू सब हो जाएगी।

गर मैं अकेला हो जाऊंगा, कैसे मैं सहूंगा त्रास, कहो।
नहीं रोक पाउँगा यह कह, "मत जाओ, मेरे साथ रहो।"

इसीलिए है विनय निवेदन, प्रेम का मुझको रोग न दे।
भूख बने जो जीवन भर का, ऐसा मुझको भोग न दे।

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