एक दफा देखा है मैंने उसको
और ये दुनिया अपनी सी लग रही है,
एक दफा अगर वो देख ले मुझे
तो ये जहान मेरा होगा
एक दफा हंसते हुए देखा है मैंने उसको
और ये धरती खिलखिला उठी है
एक दफा अगर वो और मुस्कुरा दे
तो ये आसमान मेरा होगा
एक दफा मिल चुकी हैं नजरें भी
और मैंने सारे नदियां झरने देख लिए,
एक दफा अगर वो और मिला ले नजरें मुझसे
तो ये इश्क -ए - समंदर तमाम मेरा होगा।-
कल्पनाओं में कुछ और हकीकत कुछ ओर
कभी तम भरी रात तो कभी चमक... read more
सहिष्णुता(धार्मिक, जातीय) क्या है ??
क्या सबकी नज़रों में ऊपर उठने के लिए
अपने धर्म को नज़र अंदाज़ करना सहिष्णुता है ?
क्या अपने आप को दुर्बल प्रदर्शित करना सहिष्णुता है ?
क्या चुप चाप सहते जाना या फिर
चुपचाप देखते रहना सहिष्णुता है ?
वासुदेव कुटुम्बकम की धारणा वाले देश में धर्म
जाति के नाम पर जहर फैलते देखना सहिष्णुता है ?
सहिष्णुता क्या ये शब्द सिर्फ किसी जाति विशेष पर लागू
होता है अथवा किसी जाति विशेष को लाभ देता है ?
मैं भी सहिष्ण बनाना चाहता हूं परन्तु
बहुत उलझन है समझने में सहिष्णुता क्या है ??
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ना दिखा ये मर्दानगी मुझे गर देख लिया मैंने
नज़र उठा के तुझे तेरी आंख लहू से भर जाएगी
बंद कर ये डराना डमकाना हाथ उठाना
गर चीख दिया मैंने तो तेरी रूह तक मर जायेगी...-
वो लम्हें वो दिन वो मुलाकाते वो महफिलें सब बीत गए हैं जनाब
अब तो बस कुछ यादों के सहारे जिया जा रहा है
कभी होते थे मेले यारों के दिल की बातें खोल रखने को
अब तो बस मजबूरियों का जहर जिंदगी में घोल के पीया जा रहा है.....-
अधुरा हमसफ़र.....
तु एक दिन रूठ जाएगा ये सब कुछ छूट जाएगा
जिस डोर ने बांध के रखा है वो धागा टूट जाएगा
ना बंद होंगी सांसे ना खुल के जिया जाएगा
किसी गैर की बाहों में कैद हो कर
बस जहर यादों का पीया जाएगा
चैन उम्मीद सुकुन कुछ नहीं होगा
बस बेमतलब ही रहती सांसों का सफर तय किया जाएगा
रूहें रह जाएंगी तड़पती हुई किन्हीं विरानों में
सिर्फ जिस्मों का समझौता किया जाएगा
सूख जाएंगे आंसू आंखों से झरना लहू का फूट जाएगा
तु एक दिन रूठ जाएगा ये सब कुछ छूट जाएगा....
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ਤੂੰ ਰੱਬ ਮੇਰਾ ਤੂੰ ਹੀ ਮੇਰੀ ਜਾਤ ਸੱਜਣ
ਲੰਘਿਆ ਕਈ ਬਰਸਾਤ ਸੱਜਣ
ਨਾ ਕਾਬੂ ਵਿਚ ਜਜ਼ਬਾਤ ਸੱਜਣ
ਕਰ ਕੋਈ ਤਾਂ ਮਿਠੜੀ ਬਾਤ ਸੱਜਣ
ਤੂੰ ਰੱਬ ਮੇਰਾ ਤੂੰ ਹੀ ਮੇਰੀ ਜਾਤ ਸੱਜਣ-
हालात बड़े नाजुक से हैं दिल के अब तो
इंतजार में तेरे मेरी सांसें भी बिकने लगी है,
मैं हवा में तस्वीर बनाता हूं तेरी अब तो
तू मुझे दीवारों में भी दिखने लगी है......
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बंधा हूं प्रेम की पक्की डोर से तुम्हारे संग
निर्मोही कह के ये धागे क्यूं तोड़ते हो,
नाजुक है दिल मेरा रंगा है रंग में तुम्हारे
फिर ये कड़वे बोलों के बाण क्यूं छोड़ते हो।— % &-