ये ख्याल भी लाज़वाब है
तेरा अलावा भी किसी का हो जाऊं
ये भी एक ख्वाब है-
वो फरमाहिश करते रहे इश्क का
और हमे हो गया था
वो औरों को बताना चाहते थे
और हमे, उन्हे बताना रेह गया था-
दूर होना तो लाज़मी था
तू सच नहीं समझती थी
और मैं झूठ ही कहता था
तू इश्क को ज़िंदगी समझती थी
मैं तुझे ज़िंदगी समझता था-
मैं आसमां में आसमां ढूंढने चला था
मैं नफरतों के बाज़ार में नफरतों का पता ढूंढने चला था
अरे खरीदार ना तो मैं था, ना तो ज़माना था
पर मुनाफे के शोर से उसे बेचने हर कोई चला था-
हर रोज़ इंसानियत मरती है
जब भी तुम जश्न में होते हो
और ग़रीबी बिन कम्बल
सड़क पर दम तोड़ती हैं-
तू इस क़दर मेरी आदत में बसती है
मैं हर बार बारिश कहता हूं
तू हर बार काग़ज़ की कश्ती केहती हैं
मैं हर दिन इत्र भूल जाता हूं
तू इस क़दर सौंधी खुशबू दे जाती हैं-
जब भी गुजरूंगा,
तेरे दीदार को भी तरसुंगा ।
पर सही हमेशा यही करूंगा
की तू इंतज़ार में होगी
और मैं कभी नहीं रुकूंगा-
दर्द शहर्द में हैं वो
आज शहर में है वो
मिलते नहीं है अब हम
पर रहती आज भी दिल में है वो-
रात का विसात है
ये एक नई सौगात है
जो शाम को है ढल चुका
वो उग सुबह को है रहा-
हर आग,है गीला
है हर दर्फ ,दरार
कभी जो , सच की ईंट भी टूटी
तो नई सी खड़ी है झूठ की दीवार है-