रूद्राक्ष मिश्रा✍️   (रूद्राक्ष कात्यायन)
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Joined 8 April 2019


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Joined 8 April 2019

एक सिहरन से डर गया है दिल,
हद से आगे निकल गया है दिल,

जानता हूँ शिकस्त है मेरी,
लड़-जगड़ फिर भी अड़ गया है दिल,

मेरा महरूम था कोई शायद!
बस यही जानकर गया है दिल,

दिल की गलियाँ सुपुर्द गलियाँ हैं,
दिल के मौसम जो चल गया है दिल,

अश्क-ए-मायूस है मगर फिर भी,
तुझसे मिलकर बदल गया है दिल,

दफ्न है कब्र-ए-आशिकी में कहीं,
अपने दिल से उतर गया है दिल।
--रूद्राक्ष कात्यायन✍️


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इस पथ से अब घर को जाना मुश्किल है,
पत्थर का हीरा बन जाना मुश्किल है

हम समय के वो अक्षम्य अपराधी हैं,
जिनका अब सूरज हो पाना मुश्किल है।

मिट्टी के पुतले हैं रूप बदलते हैं,
अब उनका आकार बनाना मुश्किल है,

आशाओं का रूप बदलता रहता है,
वचनों का अधिकार निभाना मुश्किल है,

कोई संशय नहीं प्रलय की कोख बड़ी,
अवसादों से महल बनाना मुश्किल है,

सम्बंधों के इतने रूप बदलते हैं,
चेहरे पर चेहरा रखपाना मुश्किल है।
-रूद्राक्ष कात्यायन✍️

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"रोज़ वाला एक सज़ीदा दिन"
(अनुशीर्षक में पढ़ें),-

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दुनिया की हकीकत जब देखी,तबअपने ठिकाने यादआए,
जो बीत गये सपनों की तरह,वो आज ज़माने याद आए।

कल भी तो वही पर ठहरे थे,वो पाँव जो मेरे थे सचमुच,
चलने पे बहकते कदमों को,कुछ रंज पुराने याद आए।

फिलहाल में काटी जाती है इक जिस्त जो पत्थर जैसी है,
सदियों के पुराने माज़ी से रिश्ते भी निभाने याद आए।

आए वो कुछ ऐसे ख़्वाबो में,परवाज भूला बैठे हम भी,
जब बात छिड़ी अप्सानों की,रह रह के बहाने याद आए।

तन्हा-सी हमकती साँसों से पूछो तो मेरे जीने का सबब,
होने की कशिश में होंठो को,कुछ लब्ज मिटाने याद आए।

उलझन का पता देने वाले,उलझन थे बहकते जामों की,
पीने की ख़ता करते-करते,दो घूँट पिलाने याद आए।
--रूद्राक्ष कात्यायन✍️

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"फिर किसी सोच में ग़ुम होके ये सोचा मैंनें।"
(अनुशीर्षक में पढ़ें),-



अदृश्य का एक प्रस्तुतीकरण)

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रहमतों का यही खज़ाना है,
ग़म में आँसू नही बहाना है,

अहले ग़म ज़िन्दगी से ज्यादा है,
मुझको दुनिया से पार जाना है।

सोचता हूँ मैं ज़िन्दगी कब था,
मौत का ही तो शामियाना है,

दर्द की सिसकियाँ ख़ुदा जाने,
मंजिल-ए-पाँव ख़ुद बनाना है।

फिर न पूछा गया मेरा मतलब,
पुतलियों को यूँ ही नहाना है,

तुम मेरा हाथ छोड़ दो आख़िर,
मेरा अपना नहीं ठिकाना है।
--रूद्राक्ष कात्यायन✍️

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अब मेरे दिल को सताने पे न जा,
तंग महफिल को मनाने पे न जा,

प्यार हो तो मुझे हासिल कर ले,
सारी दुनिया को बताने पे न जा।

मेरी गुरबत में वफा है मेरी,
मुझसे दामन को छुड़ाने पे न जा,

जा मेरे सामने दुआ बनकर,
फैसले करने,कराने पे न जा,

और कुछ भी नहीं है दुनिया में,
वहम-ए-उलझन के ठिकाने पे न जा,

रह गये हम उदासियों में कहीं,
अब तू इस जुल्म-ए-ज़माने पे न जा।
--रूद्राक्ष कात्यायन✍️

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रहे करीब मगर पास आना भूल गये,
वो रहमतों का ख़जाना लुटाना भूल गये,

खुदा का नाम लेके हमने दर नहीं छोड़ा,
मेरे सफर में वो मंजिल बनाना भूल गये।

मलाल था कि बिछड़ते तो कहीं मर जाते,
बिछड़ते वक्त ये वादा निभाना भूल गये,

हम ऐसे लोग मुहब्बत पे ज़िद नहीं रखते,
शिकस्त मिल गयी,लड़ना-लड़ाना भूल गये,

सफर तमाम रहा,ज़िद थी ज़िन्दगानी की,
सो अश्क आँख से बाहर बहाना भूल गये,

हुए थे उम्र के ख़्वाबों से हसीं समझौते,
उम्र गुज़री तो ये दुनिया,ज़माना भूल गये।
--रूद्राक्ष कात्यायन✍️

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एक दुनिया थी,
रात के घुप अंधेरे में,
मेरे साए के करीब,
मैं आगे बढ़ता,
साया मेरे पीछे,
दुनिया उसके पीछे,
फिर मैं रूक गया,
साया रूक गया,
मैं अंधेरे में खड़ा हो गया,
साया खो गया,
दुनिया अब भी चल रही थी,
वहीं मेरे पीछे,
और मैं अब उसके साथ चलने
की कोशिश में,
लोगों से पिछड़ रहा था।
--रूद्राक्ष कात्यायन✍️

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शायद! इस कारण चिंतित हूँ।
(अनुशीर्षक में पढ़ें),-

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