अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं.
ना भुक्तं क्षीयते कर्म कल्प कोटि शतैरपि. (ब्रह्मवैवर्तपुराण १/४४/७४)
अर्थात मनुष्य जो कुछ अच्छा या बुरा कार्य करता है, उसका फल उसे भोगना ही पड़ता है. अनन्त काल बीत जाने पर भी कर्म, फल को प्रदान किए बिना नाश को प्राप्त नहीं होता. अच्छे कर्म, पुण्य और बुरे कर्म, पाप कहलाते हैं. पुण्य का परिणाम सुख तथा पाप का परिणाम दुःख होता है. श्रीरामचरितमानस
यही तत्थ्य स्पष्ट रूप से सामने रखता है –
कर्म प्रधान विस्व करि राखा, जो जस करहि सो तस फलु चाखा.
काहु न कोउ सुख दुःख कर दाता, निज कृत कर्म भोग सबु भ्राता.(२/९१/४)- Raghu
26 SEP 2019 AT 19:46