One's own self is one's friend and one's
own self is one's own enemy,
so lift yourself with your own efforts
and do not degrade.-
they'll just flow in you and you'll feel light ,
ju... read more
कितने घरौंदे यहां बसे है...
कितनों ने यहां आशियाने बनाए रखे है...
और फिर भी... न जाने क्यों लगता है,
कोई रहता नही इधर...?
सुनसान पड़ा है शहर...!
न आवाज है न हलचल... न जाने किसकी दहशत है...?
जो परिंदे अपने ही घरों में आने से कतराते है?
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"Hiraeth"
A deep inborn sense of yearning,
for a home, place or a bond
that is beyond existence...
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"चंचल थी, नटखट थी,
फिर हुंकारों से लतपत थी,
अनुतरित प्रश्नों में लिपटी
सरिता संघर्षों से आहत थी।
काट चुकी है,
अंतर वह,
प्रश्नों ने उत्तर पाया है।
उफान पे उठी लहरोने आज,
संथ गती को अपनाया है,
पुनः स्वयं को,
शांत देखकर,
नदी का मन हर्षाया हैं।"
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To be alive and colourfull in all seasons.
Plants taught me to
Bend and raise with rain and Strom,
They taught me shade in cold wintery days,
And blossom through springs.
Plants teach us life, growing and walking forward without losing your roots.
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The Ups and downs,
all the beeping sounds,
are necessary to make you go on...
Becoz usually,
we see a steady straight line
Once you stop running the red wine.
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जिन्दगी के
हर दो कदम पर – दोराहे
और
हर चार कदम पर – चौराहे है ।
हर दोराहे पर – उलझन
और
चौराहे पर – व्याकुलता निःशंक है।
...चुनना ,
चुनावों अनुसार मुड़ना,
रास्तों की सत्यता स्वीकारना
और
निरंतर चलते रहना। ...
शायद यही जीवन का
चखकर भी अनचखा
देखकर भी अनदेखा
अनुभविक रूदन और सौंदर्य दोनों है।
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एक अग्नि
जो अंतर्मन में जल रही निरंतर
उसे बुझने की आस है
क्रोध की ज्वालाओं को पानी की प्यास है।
कुछ द्वेष की लपटे
पूरा नंदन वन जला रही
उन्हें संभाल जाने की आस है
अंतर्मन की अग्नि को
पानी की प्यास है।
गलतफहमियां धधग रही
अंदर ही अंदर भड़क रही
उलझी उन फहमियों को
सुलझने की प्यास है
अंतर्मन की अग्नि को
बुझने की आस है।
कल बीत गया
अब राख हो चुका
उन राख की तितलियों को
उड़ने जाने की आस है
कहीं तपिश जो बाकी है
उसे बुझ जाने की आस है
अंतर्मन की अग्नि को
पानी की प्यास है।
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जोखिम से डरे नहीं
मुश्किलों से घिरे,
पर बिखरे नही।
सांसों को कस के थामा
रूह को जकड़े रखा।
क्या है की...!
वो मंज़िल बहुत करीब थी
पर न जाने क्यों ?
नज़रे इस बात से बेखबर थी।
अब कुछ नज़रों को बताना था,
कुछ रूह से जताना था
और कुछ खुशबुएं हर रोज थोड़ी महकती है,
सांसों को उन खुशबूओ से मिलना था।
तो क्या,
हम जोखिम से डरे नहीं
मुश्किलों से घिरे पर बिखरे नही।
( कुछ मंजिले जिंदगी का मकाम होती है,
तो जिंदगी से ज्यादा मुक्कमल लगती है।)
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