जो सब ओर हैं वो इब़ादत हूँ मैं,
जो सब में हैं वो ठ़हराव हूँ मैं,
जो आज तक चल रहीं हैं वो रिवायत हूँ मैं,
जो कभी कम ना हो वो लिहाज हूँ मैं,
जो निरन्त़र हैं वो अमन हूँ मैं,
जो कभी मिट़ न जाए वो अल्फ़ाज हूँ मैं,
जो कभी टूट़ न जाए वो मोहब्ब़त हूँ मैं,
जो हर वक्त़, हर पल मेरी रूह में झलकतीं हैं वो परम आवाज़ हूँ मैं...
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