कुदरत की कारीगरी से हैरान हुं मैं
बहुत कुछ जानते हुए भी नादान हुं मैं
हर रंग में हर रूप में इक अदभुत नज़ारा है
नई नवेली दुल्हन ने जैसे अभी घूंघट उतारा है
इसके गहरे रहस्यों से जैसे अभी अनजान हुं मैं
कुदरत की कारीगरी से हैरान हुं मैं
ऊंचे पर्वत, कहीं समंदर कहीं बर्फ की चादर है
एक रंग को समझोंगे तो दूजा नया उजागर है
सर झुका सलाम करते हैं तेरी नियामतों को
ना जाने तेरी गोद में कितने दिनों का मेहमान हूं मैं
कुदरत की कारीगरी से हैरान हुं मैं
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