Rupinder Braar   (रूपिन)
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Joined 16 July 2017


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12 NOV 2021 AT 10:23

I know
World need more people like me ..😘
But can't help
I am a limited Edition

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3 AUG 2018 AT 18:05

तेरे चेहरे की देख कर मुस्कुराहट
नूर यह मेरे चेहरे पे आया होगा
और मुझे यूं हंसता देख
दिल तेरा भी मुस्कुराया होगा

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20 OCT 2021 AT 22:07

माना की उजाले रहते नहीं हमराह हरदम
मगर अंधेरों से ज़्यादा रोशनास भी अच्छी नहीं

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30 AUG 2021 AT 12:33

भयभीत भाग रहा था वह,  कुछ तो उसने छुपाया था
चार दिन से भूखा था वह ,इक निवाला न उसने खाया था
न मटकी तोड़ी ,न माखन खाया .........
सुखी सी इक रोटी को ,मन लालियत हो आया था
ना  कृष्णा , ना  ही मुरलीधर ,कहके उसे बुलाया  था
भूखी काया की भूख मिटाने ,चोर वह कहलाया था
बचपन रोंधा भूख प्यास ने ,
नाता अटखेलियों से न जुड़  पाया था।
ओह कृष्णा  ,युग बदल गया है ,
जीवन पर कठनाईओं का साया  और माखन का आभाव  है।
मुख पर तेज़ नहीं  परेशानियों के भाव है।
क्या कहूं  इसे कृष्णा मैं ,बदलते समय का प्रभाव है.
इस युग में गर तुम भी होते
देखकर भूखे नंगे बच्चे रोते , ना तुम  बांसुरी की धुन में खोते
कृष्णा इक बार दृष्टि इधर घुमाओ
हर बच्चे को कृष्ण वरदान दे जाओ
हर बच्चे को कृष्ण वरदान दे जाओ


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19 AUG 2021 AT 16:45

हम हंस दिए उसकी हर बात पे
और वह मुस्कुराया भी नहीं

 हम राज़ दिल का हर कहते रहे
 उस ज़ालिम ने कुछ सुनाया ही नहीं

 मोहब्बत मेँ हमारी कोई कमी न थी
पर आँखों में उसकी सुरूर आया ही नहीं

 छोड़ के दामन जो पलट जाने लगे
 मुड़ के इक बार उस ने बुलाया भी नहीं

 निभाते कब तक इक तरफ़ा रिस्ता हम
जब अहसास उसने दिल में कोई जगाया ही नहीं

 कहता है वह की हम बेवफा हो गए
वफ़ा का हुनर उसने सिखाया ही नहीं

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17 AUG 2021 AT 18:32

महफिलों के राहगीर को क्या मालूम ,
किसी के दिल का मिज़ाज़, सुना सा हो चला है

दीवारे भी हंस रही है उस पे,
जो टकरा के उनसे, पत्थर सा हो चला है

किसने  कहा की कोशिश रंग लाती  है,
कोशिश का भी रंग अब , बेरंग सा हो चला है

साल बहुत लगे इस मक़ाम पर आने को ,
सदियों का यह तो ,फलसफा हो चला है

थी ख्वाइशें  बहुत , उमीदो की तरह ,
क्या हुआ उनका ,जो  बहुत धुआँ सा हो चला है

जिस किस्से को सुन कर तुम चले आये  पास ,
 उस  कहानी का अब  तो ,अंत हो चला है

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14 AUG 2021 AT 13:17

सिमटी  सी ज़िंदगी
बिखरी  सी ख्वाइशें
सपनो का झमघट
उमीदों का समंदर
मैं  बेखौफ .....
उड़ने को तैयार
बह जाने को उस पार......
बनके  पतवार
हाँ मैं तैयार  


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14 AUG 2021 AT 12:04

कुछ कदमो के निशान नहीं होते
कुछ ज़ख्म बयां नहीं होते
छुपाया है आँखों में कई किस्सों को हमने
क्यूंकि कुछ दर्द तूफ़ान नहीं होते
रिसते है बन के वह नासूर वक़्त के साथ
जो होठों  से सुना नहीं होते...... 


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14 AUG 2021 AT 11:43

तुम अनकही बातों का समंदर हो
और मैं लहरों की तरह बहती इक आवाज़
जो आती है बार बार
फिर लौट  जाती है टकराकर
कभी निराश , कभी हताश
तो कभी किसी चाही , अनचाही सौगात के साथ
समां जाती है उसी समंदर में
पर नहीं  छोड़ती अपना वजूद
किनारो से टकराना उसकी फ़ितरत  है
और सब नकरात्मकता को वही पीछे छोड़
समुन्दर में बस जाना  उसकी किस्मत 


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29 DEC 2020 AT 18:08

हो सकता है की जंग जीतने वाला
इस बात की ख़ुशी  मनाता हो
की वह लौट  जाता है अपनों के बीच
पर हार  का गम भी तो ज़िंदा लोग ही मानते हैं
मरने वाला , चाहे जीता हो या हारा
रह जाता है वही मैदाने  जंग में
जीत का बिगुल या हार का मातम
सुनने को नहीं लौटता  वह अपने घर
फर्क सिर्फ इतना है की जीतने वाला
जीतता  है खुद के लिए
और देता है हारने वाले को मात
और हारने वाला खुद को हार के
उसे  लौटा देता है उनकी ज़िंदगी
फिर क्यों हार और जीत के बीच
जीत बड़ी लगती  है और हार छोटी
क्या कभी देखी  है इस  छोटी सी हार से
 बड़ी जंग की जीत
अगर नहीं ...तो जीत मुबारक हो
और अगर हाँ ...
तो भी ........जीत मुबारक हो.......  


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