🌻एक रात चाँद ने एक जुगनू से पूछा, "तुम्हें शर्म नहीं आती दूधिया उजाले में अपनी टिपिर-टिपिर बत्ती चमकाते हुए कि उससे कितनी रोशनी होती है?"
जुगनू बहुत शर्मिंदा हुआ इस व्यवहार से और उससे भी ज़्यादा ख़ुद के अस्तित्व पर। अपने साथ-साथ ईश्वर को भी कोसता रहा। लेकिन उसकी टिप-टिप बत्ती बुझी नहीं, वह उसके अधीन नहीं थी। वर्षों बाद एक दिन फिर चाँद से से उसी बात पर भिड़ंत हुई। जुगनू ने कहा, "पता है मुझे कि एक बार मेरे एक पूर्वज को तुमने ऐसा ही कुछ कहा था। तुम बस एक अँधेरी रात के बाद मिलना।"
चाँद राज़ी हो गया। वह जुगनू उस रात सहस्त्रपुर राज्य के राजा के शयनकक्ष के पर्दे पर रात भर बैठा रहा। दूसरे दिन राजा ने मुनादी करवा दी, "अब से इस राज्य की सीमा तक हर माह दस रात चाँदनी नहीं होगी, जुगनुओं की पहरेदारी होगी।"
बाद इसके सब कहानी सुनते रहे कि जुगनुओं में से एक ने उनको भी उनकी बात बतायी...🌻
"इसी राह पर" से साभार
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