ज़िन्दगी तू खूबसूरत बहुत हैं,
पर पेंचीदी क्यों इतनी हैं?
ग़म इतनी दिये जा रही हैं,
आखिर मुझपर उधार कितनी हैं?-
आज फिर एक शायरी नाम तेरे यार करता हूँ,
कलम गिरवी रख शब्दों का व्यपार करता हूँ,
स्याही बस कहीं कम न पड़ जाए,
सोच स्याही में खून कि मिलावट हरबार करता हूँ।-
कुछ यहां सच तो बहुत कुछ फ़रेब हैं,
रिश्ते को बंधन कहते है ऐसा उरेब है।-
दरारे थीं दीवारों पर,
और ये छत टपकता था,
पर एक बात अच्छी थी तब,
ये मकां घर हुआ करता था।-
आँखों का था सारा कसूर
और सजा दिल ने पाया,
दिल दर्द बयां कर न सका
और आँख बेवजह भर आया।-
सजी है दुनियां कच्चे रंगों से,
जल्द आँखों से उतर जाती है।
कहते है विश्वास की दीवार जिसे,
पलक झपकते बिखर जाती है।-
कोई खेल ना पड़ता मेरे पल्ले ,
सबने ये जान कर,
कर दिया मेरी खुशियों का फैसला,
सिक्का उछाल कर।-
इश्क़ ❤️ की एक बात अच्छी हैं,
वफ़ा को मिलती बेवफ़ा ये बात सच्ची हैं।-
महाकाल कि भक्ति में,
जब कोई लीन हो जाता हैं।
मोह माया को छोड़ वो,
मोक्ष में विलीन हो जाता हैं।-
ख़ुद कि खुशियाँ गिरवीं रखकर,
गैरों कि खुशियाँ ख़रीदने चला था।
मोल नहीं था जिस चीज़ का कोई,
उसी कि ख़ातिर ख़ुद बिकने चला था।-