Rupesh Kumar   (© rUPESh)
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Joined 22 March 2018


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16 AUG AT 13:44

ऐ सुनो
क्या बारिश के पानी में
भींगने का मन करता है?
किसी को है तुम्हारा ख्याल
से सोच मुस्कुराने का मन करता है?
तो बताओ
क्यूँ अकेले भींग रहे
बारिश की बूंदों के बीच खुद को सुगला रहे?
सुनो
जैसे ये बारिश का पानी
मिट्टी को ठंढक देता है ।
दिलजलों की आँखों के पानी
को धोने के काम आता है ।
तो बस
खुली आँखों से
सच को स्वीकार करो ,
बारिश के बाद के इंद्रधनुष
का इंतजार करो।
आएगी कोई तेरी भी
जो बारिश में भी
तेरी आँखों में आँखें डाल
एक ही रेनकोट के नीचे
जिंदगी भर खड़ी रहेगी ।

-


15 AUG AT 9:39

जिनसे कभी जान से ज्यादा मुहब्बत थी
आज उनसे बात भी नहीं होती ।।
जिनकी हंसी कभी सब कुछ भुला देतीं थी
वो हंसी अब सुनायी भी नही देती ।।
जिस रिश्ते को संभाला बार बार था
उसके जख़्म अब आराम से सोने नहीं देता ll
जिसके सहारे जोड़ने की बात थी
उसी ने सारे रिश्तों से तोड़ मुझे दिया।
अब तो सीख लो सब्र करना...
क्योंकि हर रिश्ता सदाबाहर नहीं रहता ।।

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7 JUL AT 17:30

मैं अगर 'दिल'
तो उसकी 'धडक़नें' कौन ?

मैं अगर 'आसमान'
तो उसकी "जमीं' कौन ?

मैं अगर 'सुबह'
तो उसकी सुरुमई 'शाम' कौन ?

मैं अगर 'गुमनाम शायर'
तो उसकी 'मशहूर शायरी' कौन ?

जिसे करता है ये दिल हरपल 'याद'
वो 'याद ' कौन ??

बोलो न
वो है कौन???
"तुम"
और कौन?😊

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29 JUN AT 21:00

रसोई के खिड़की से बाहर ,दिख रहा था आसमान
कुछ बादल उमड़ते घुमड़ते,उनके बीच टिमटिमाते तारों का ज़हान।
कुछ देर पहले बारिश हुई थी,
मिट्टी से सोंधी खुशबू तैर रही थी
बैठा अपने कमरे में, मैं
अकेलेपन से बातें कर रहा था,
इस मौसम में एक चाय मिल जाय
तो बस मजा ही आ जाये ये सोच रहा था।
तब कहीं दूर से एक आवाज आयी
आज भी तुम उतने ही आलसी हो
जब तक न दूँ चाय बिल्कुल नहीं हिलते हो,
नहीं हूं साथ तो क्या हुआ
जाओ रसोई में जो पतीले पे चाय चढ़ाओ।
जरा अपनी नजर रसोई की खिड़की से बाहर तो फिराओ ।
मैं गया रसोई बनाने चाय ,वही नजारा बाहर दिखा,
वही उमड़ते घुमड़ते बादल ,और तारे टिमटिमाते,
जैसा उसने कहा था ,
सोचने लगा अरे कैसे उसे सब पता था
तभी एक झोंका हवा सा आया ,
लगा दुप्पट्टा कोई लहराया और मेरे चेहरे को छूता हुआ,
दूर कहीं चला गया
वो अहसास कितना खास था
अब मैं चाय और मेरा अकेलापन नहीं
वो अहसास मेरे साथ था ।
जैसा उसने कहा था ।

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27 JUN AT 22:56

चलो एक कहानी लिखते हैं
कुछ अपनी तो कुछ तुम्हारी सुनते हैं।
चलो  मिलकर एक कहानी लिखते हैं

माना की कुछ ख्वाइशें नहीं हुई हैं पूरी तुम्हारी,
हम भी तुमबिन अधूरी ख़्वाइशों की लंबी फेरीस्त रखते हैं
चलो मिलकर एक कहानी लिखते हैं ।

जैसे कहीं दूर बैठीं आप चाँद को निहारतीं हैं
वैसे ही तारे भी तो हमारी बातें सुनते हैं
चलो मिलकर एक कहानी लिखते हैं ।

चलो अपने जख्मों को किसी ताखे में रखते हैं
बस कुछ पल के लिए एक सा सोचते हैं
चलो मिलकर एक कहानी लिखते हैं ।
चलो मिलकर एक .....कहानी लिखते हैं
कुछ तुम्हारी तो कुछ मेरी सुनते हैं ।।

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21 JUN AT 7:56

दुनियाँ के बाज़ार में
रिश्तों के भंवर जाल में
उठती है एक टीस हर दिल के कोने में ,
कोई आये और कहे ,

क्या ढूंढ रही है आंखे
इतनी हसरतें लिये
क्या छुपा है दिल में जो
लिख रहा प्यार की पाँती सबके लिये
क्यों बैठा है तन्हा
होठों पे फीकी मुस्कान लिये

चुप न रह पगले
न रह तन्हा,
राज सब खोल दे,
अरे
अब तो बोल दे
क्योंकि
मैं हूँ न तेरे लिये

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19 JUN AT 21:51

मैं आजकल खुशियों के बादल के ऊपर टहल रहा हूँ,
बस मस्त मलंग सा मतवाला इधर उधर फिर रहा हूँ,
सच कहूँ तो ,
किसी के खिलखिलाते चेहरे के बारे में सोच कर ही,
मन ही मन झूम रहा हूँ,
हाँ , मैं तो बादलों के उपर ...
टहल रहा हूँ, टहल रहा हूँ !!!

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15 JUN AT 23:25

कहना तो है बहुत कुछ,
मगर कह नहीं पाता हूँ ।
ढेर सारी जिम्मेदारियों के तले,
खुद को खुद से लड़ते पाता हूँ।
इस भरी पूरी दुनियाँ में,
खुद को अकेला पाता हूँ ।
शायद अच्छा होने की,
कीमत चुकाता हूँ।

कब किसको अपनी अपनी
करने से रोक पाता हूँ।
बस खुद को ही ,
मकड़े के जाल में फँसा पता हूँ।
शायद अच्छा होने की,
कीमत चुकाता हूँ।

हैं बहुत सारे अच्छे लोग आसपास भी
मगर कहाँ उनसे भी दिल लगा पता हूँ।
बीच खुद की उलझन और उनकी सुलझन के ,
खुद को बहुत उलझा पाता हूँ।
कोई मुझे समझे इसी आस में,
भटकता जाता हूँ।
शायद अच्छा होने की,
कीमत चुकाता हूँ।

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1 JAN AT 0:22

जिसे बीतना था वो बीत गया ,
जिसे आना था वो आ गया ,
हम सबको नित दिन चलना है,
इस नए को बीते में बदलने के पहले
नया इतिहास गढ़ना है
अपने लिए बीते वर्ष से भी ज्यादा
नया मुकाम हासिल करना है !!!

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31 OCT 2024 AT 1:34

वो नदी की धारा जैसी ,और वो समंदर
समंदर भी ऐसा जो ,इक आस लिए बैठा है
नदी बह कहीं भी रही हो,किसी दिन वो उसमें आ मिलेगी ।
दो अलग रास्ते पे हैं दोनों
दोनो की अपनी अपनी परेशानियाँ,हैं अपनी अपनी शैतानियाँ,
और अपनी अपनी ज़िम्मेदारियाँ
किसी को गाँव, शहर बसाने की
तो किसी को सबकुछ, खुद में समाहित करने की
फिर भी दोनों की लहरें हैं एक, मन की बातें हो जातीं है
बहती हवाओं द्वारा, तो कभी बादलों द्वारा
संदेशे तो मिलते हैं, मगर अंदेशे रहते हैं
मन की पीड़ मन में रख, समंदर कहता है भगवन से
मिलना जब नियति है नदी की तो, क्यूँ उसको दूर बनाया ?
सोचो गंगा कितनी दूर चलती है,आके मुझसे मिलने को
क्या वो इतना चल पाएगी ,अपनी मंजिल पाने को ?
नदी की पीड़ा नदी की तरपन,सिर्फ नदी ही जाने ,
मगर समंदर अपनी नदी की बाट,अहिल्या सी सदियों से जोहे
अब समंदर कौन नदी कौन ये ,तो या तो समंदर या नदी ही जाने ।

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