Rupesh Kr Pandey ✍️   (रूपेश कु पाण्डेय✍️)
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Joined 30 November 2019


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11 JAN AT 20:02

पाण्डेय जी की ज़ुबानी
सुनो ध्यान से इश्क की कहानी

यहां इश्क सरेआम नीलाम होती हैं
बिना पैसों की मोहब्बत भी बईमान होती हैं
गर यकीन ना हो तो आजमा लेना महबूब से
पूरा न कर सके ख्वाइश उसकी तो गैरो का दामन थाम लेती हैं

इश्क में एक बात बड़ी ख़ास होती है
मोहतरमा को हमेशा बेहतर की तलाश होती हैं
पैसों से तोला जाता है आपकी अहमियत को
सच में प्यार बिना पैसों की बकवास होती हैं

जिम्मेदारियों की तले दबा बैठा वो शख्स
अपने सपने अपने ख्वाइशों को दबाता रहा
मोहब्बत शौक पूरा करने से नहीं साथ चलने का नाम हैं
हजारों बातें सुनकर भी वो शख्स इश्क क्या है समझाता रहा

तकल्लुफ उसे भी होगी वो वक्त भी आयेगा
शौक पूरा होने पर वो कहा जाएगा
खो चुका होगा सबकुछ पाकर भी वो
तब कदर करने वाला वो शख्स बहुत दूर चला जाएगा

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22 DEC 2024 AT 21:29

कर हौसला बुलंद
ज्यादा से ज्यादा क्या होगा
बुरे हम, किस्मत बुरी
बस एक बुरा हादसा होगा

मिन्नतें वही करो मुसाफ़िर
जहां लगे की कुबूल दुआ होगा
हमारे जलने से बेखौफ कैसे रहोगे
हर मंजर धुंआ धुंआ होगा

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4 SEP 2024 AT 23:26

आदत करके इश्क में मैं पछता रहा
जाने किस गुमनामी में मैं जा रहा
इस कदर लत लगी थी उसकी मुझको
अब खुद ही खुद को समझा रहा

यू बिना बात किए रातों को नींद ना आना
जाने क्यों मैं ख्वाबों को बेवजह सजा रहा
मैं क्या हूं और मेरी जरूरत क्या है उसे
धीरे-धीरे मुझको भी अब समझ आ रहा

रानी कहती थी खुद को मुझे राजा का हवाला देकर
जान मैं किस दलदल में फसता जा रहा
उसे कोई फर्क ना पड़ेगा ए मुसाफिर
यही बात मेरा दिल मुझको समझा रहा


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4 SEP 2024 AT 15:06

संग तेरे नोक-झोक जैसे रोज की इबादत हो गई है
एक पल बेगाना न रह सकूं ऐसी आदत हो गई हैं

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29 AUG 2023 AT 17:28

लोग झूठ कहते हैं कि
स्थिति कोई भी हो घबराना नहीं
हम रात दिन काम करने वाले
फिर क्यों मेहनत का मेहनताना नहीं

अपना दुख सुनाएं तो भी किसे
अब पहले जैसा जमाना नहीं
ए त्यौहार यू बार-बार ना आया कर
जेब खाली है और घर में कोई खजाना नहीं

जिम्मेदारियो के तले दबा बैठा मैं
कोई ना समझे तो समझाना नहीं
मैं भूखा मर जाऊं किसे फर्क पड़ता है
मेहनत करता हूं पर मेहनताना नहीं

यह जो दौर है बस गुजर जाए
हे भगवान ऐसा समय दोबारा लाना नहीं
हर बार सहलु इतनी हिम्मत नहीं मुझमें
मेरी किस्मत यूं बार-बार मुझे आजमाना नहीं

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31 MAR 2023 AT 22:58

जहन में जो डर है
हर पल इसका असर है
एक ख्वाब जो टूटने वाला है
एक साथ जो छूटने वाला है
पल-पल की घुटन के साथ
कैसे रहूंगा मैं
जो तुम ना होंगे साथ मेरे
अपना दर्द किससे कहूंगा मैं

दोनों का हाल एक सा है
मन में सवाल एक सा है
क्या आसान होगा एक दूजे को भुलाना
पर कौन चाहता है एक दूजे को रुलाना
कटी पतंग सा हो जाऊंगा मैं
जाने किधर उड़ कर बिखर जाऊंगा मैं

मेरा सिखाया गया जाया ना करना
जिससे भी जुडोगे उसको पराया ना करना
वक्त ने करवट ली तो हंसता हुआ मिलूंगा
बस मेरे बारे में कोई अंदाजा लगाया ना करना

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31 MAR 2023 AT 22:51

जहन में जो डर है
हर पल इसका असर है
एक ख्वाब जो टूटने वाला है
एक साथ जो छूटने वाला है
पल-पल की घुटन के साथ
कैसे रहूंगा मैं
जो तुम ना होंगे साथ मेरे
अपना दर्द किससे कहूंगा मैं

दोनों का हाल एक सा है
मन में सवाल एक सा है
क्या आसान होगा एक दूजे को भुलाना
पर कौन चाहता है एक दूजे को रुलाना
कटी पतंग सा हो जाऊंगा मैं
जाने किधर उड़ कर बिखर जाऊंगा मैं

मेरा सिखाया गया जाया ना करना
जिससे भी जुडोगे उसको पराया ना करना
वक्त ने करवट ली तो हंसता हुआ मिलूंगा
बस मेरे बारे में कोई अंदाजा लगाया ना करना

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22 DEC 2022 AT 23:42

कुछ खास नहीं बस समाज के ताने होंगे
हर पहर हर घड़ी हाथ में किताबें होंगे
तकलीफें थोड़ी ज्यादा होंगी और क्या
बस कई रातें बिना सोकर बिताने होंगे

चंद ठोकरों के बाद हुए पूरे सपने
कल तक जो खिलाफ़ थे हो गए अपने
बदलाव की सोच लेकर मैं घर से चल दिया
बाकी सब की खातिर मैंने खुद को बदल दिया

अब परिस्थितियों के अनुसार मुझे ढलना होगा
पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति को लेकर चलना होगा
गरीबों के ख्वाबों को पूरा करने के लिए
मुझे खुद के ख्वाबों को कुचलना होगा

राजनीतिक दलालों को सम्मान देना होगा
लाभार्थी कोई छूटे नहीं ध्यान देना होगा
होके मजबूर..अपने परिवार से दूर
श्रमिक को काम और गरीबों को मकान देना होगा

उच्च अधिकारियों का आदेश..आयोग का दबाव
फिर क्यों सोचते हो कि सबका भला हो जाएगा
तुमने ठानी है ना ईमानदारी से नौकरी करने की
देखना बहुत जल्दी तुम्हारा भी तबादला हो जाएगा

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20 DEC 2022 AT 21:39

हां भाई सच में, सच के मायने बहुत है
लेकिन छुपाओगे कैसे यहां तो आईने बहुत है
फरेबी बाजार में तुम अकेले नहीं हो
यहां तुम्हारे जैसे सयाने बहुत है

बड़े खुदगर्जी से जलाते हो गैरों के घर
तुम्हें क्या..तुम्हारे तो आशियाने बहुत है
खैरियत पूछते हैं लोग..तुम्हारी दौलत की वजह से
और तुम सोचते हो कि तुम्हारे दीवाने बहुत हैं

मतलब के लिए रिश्ते बनाते हो जनाब
तुम्हारे और तुम्हारे अपनों के बीच दरारे बहुत हैं
जिस दिन गिरोगे़ कैसे संभालोगे खुद को
हमारा क्या हम गिरे तो हमारे सहारे बहुत हैं

कितने बेबस..कितने अकेले से लगते हो साहब
आपके आंगन में तो दिवारें बहुत है
इमारतों का ख्वाब क्यों देखते हो जनाब
देख लो अपने शहर का हाल यहां बंजर मीनारें बहुत है

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19 DEC 2022 AT 23:11

जिंदगी में थोड़ा तकल्लुफ किया कीजिए
बैठिए मत कुछ किया कीजिए
कब तक घुटन की जिंदगी जिएंगे साहब
एक ही तो जिंदगी है खुलकर जिया कीजिए

बरकत कैसे होगी आपके आशियाने में
उठाकर झूठ से पर्दा सच तो बयां कीजिये
वही पुराने ख्वाब, वही पुरानी ठोकरें
जमाने से हटकर कुछ तो नया कीजिए

यह दिखावे, ये चकाचौंध, ये आतिशी किसके लिए..?
सामने जो अंधेरी झोपड़ी है वहां तो उजाला कीजिए
टिप्पणियां करते फिरते हो दूसरे के गिरेबान में
फरेबी तो आप भी हो चलिए अपना मुंह काला कीजिए

होटल का बिल, झूठी महफिल दिखाते फिरते हो
सुकून मिलेगा किसी गरीब को खाना खिलाया कीजिए
हाथ गंदे नहीं होते साहब हाथ थामने से
जिनका कोई नहीं उनसे भी हाथ मिलाया कीजिए

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