Rupendra Gayakwad   (Rupendra Gayakwad Rumi)
30 Followers 0 Following

इंजीनियर, कवि, शिक्षक, रायपुर, छत्तीसगढ़
Joined 23 June 2020


इंजीनियर, कवि, शिक्षक, रायपुर, छत्तीसगढ़
Joined 23 June 2020
27 APR AT 23:08

वो मेरे आने की खबर पूछती है
दिन पता है उसे मगर वो पूछती है
रोज तसल्ली करती है वो बातों में
इंतेज़ार कब तक करूँ वो पूछती है
वो आरज़ू जो दबी है दिल में उसके
वो चाहत कब होगी पूरी वह पूछती है
रातों के अँधेरे में संग रहना है
कब आयेगी वो रात मुझसे पूछती है

-


24 APR AT 20:05

हमारे आसपास की दुनिया
अब ज़हरीली होती जा रही है
कारखानों के धुएं से भी ज्यादा तेज़
यहाँ रहने वाले लोग एक दूसरे को
दे रहे हैं मीठा ज़हर नफ़रत का
भाईचारा जैसा कुछ नहीं है यहाँ
है तो बस राजनीति की गंदगी

-


12 JAN AT 21:55

हम अब उन तंग गलियों में
जीना नहीं चाहते
पर आज भी
उनको देख कर अच्छा लगता है
पहले जितना जीना होता है दूभर इनमें
उनकी यादें उतनी ही बहुमूल्य होती है

-


25 NOV 2024 AT 4:24

कॉलेज के दिनों में
बहुत परेशान किया
हमें हमारे नंबरों ने
खासकर उन्हें ज्यादा
जो हमेशा सफल होते आए थे
जो सरकारी स्कूल से आए थे
हमने गंवा दिये वो नंबर
जो अर्जियों से आते थे
जो मिलता था वो काफी था
मान लेते थे उसे हम होनी
फिर से करते थे लाने की कोशिश
कि निकल जाए इस चक्रव्यूह से
पर कभी अर्जियों की ज़रूरत नहीं सोची
हाँ जब तक हम टूट ना गए
पता नहीं पास होने के लिए कभी कभी
नींदे टूटने के साथ सब्र भी टूट जाते हैं
डर हमें ला ही देता है ऐसी जगह
जहाँ हमारा स्वाभिमान छलनी हो जाता है
और हम रो देते हैं अंदर से
खुद को बिखरा देख
मन में हलचल मच जाता है
पर यह नंबर ही हमें सुदृढ़ बनाता है
हम सीख लेते हैं और संभल जाते हैं
जिंदगी के रास्तों पर चलना जान जाते हैं

-


19 OCT 2024 AT 2:32

जब अपने ही गैर हो जातें हैं
तब बाहर वाले से दिल लगातें हैं
पर यह दर्द ना समझने का
हम भूल नहीं पातें हैं
ज़िद पर अड़े रहने से नहीं मिलता कुछ
मजबूर करने पर रिश्तें छुट जाते हैं
जिनका अंश हैं वो भी ना समझे अगर
तो बच्चे भी पत्थर दिल बन जाते हैं
बिन नींद के खाली रातें बिताते हैं
तन्हाई में बैठे बैठे आँसू गिराते हैं
हर कश में उनके ताने पीते जाते हैं
उनकी कड़वी बातों के हम घूँट लगाते हैं
पतन के दौर से गुजरते हुए हम रिश्तों में
बस खुद को ही अपना सर्वस्व बनाते हैं
क्यों कोशिश नहीं करते समझने की यह सोच
अपने रिश्तों में धीरे धीरे नफ़रत उगाते हैं
घर जाने का मन तो होता है बहुत रूमी
पर क्या करें जब अपने ही दिल में तीर चलाते हैं
जब ग़ैरों की सुन अपने बहक जाते हैं
पद प्रतिष्ठा का नकली नकाब लगाते हैं
तो ज़हर सा लगने लगता हैं बोल उनका
जब बच्चे पर कई तंज कसे जाते हैं
सोच को भी बदलना होता है समय से
नहीं तो बच्चे की नज़र में वो गिर जाते हैं

-


27 SEP 2024 AT 6:53

हिंदी भाषा भारत को
एकता के सूत्र में बांधती है जैसे
माँ अपने सभी बच्चे को चाहती है
भले बच्चे हो अलग अलग प्रकृति के
पर प्रेम माँ का रहता सब पर
इसने सबको स्वतंत्रता का पथ दिखलाया
हिंदी के दम पर ही देश में क्रांति आया
बरसों से आयी निखरती सशक्त होती हुई
तभी तो भारत की मुख्य भाषा कहलायी
हिंदुस्तान की पहचान हिंदी है
यह भारतमाता की बिंदी है
एक एक शब्दों में कई अर्थ समाहित होते हैं
जो हिंदी की महानता के प्रमाण देते हैं
कभी ये माता का दुलार सा लगे
कभी ये भाई के प्यार सा लगे
इनके शब्द पिता की तरह गंभीर भी लगे
और कभी दोस्त की बातों जैसा मज़ेदार भी लगे
इसने कितने ही साहित्यकार को समाहित किया है
हिंदी ने ही विविधता को शरण दिया है
पहले मातृभाषा का सम्मान पाया
फिर राष्ट्रीय भाषा हिंदी कहलाया
इनकी प्रसिद्धि दुनिया में बढ़ती गई
फिर हिंदी अंतराष्ट्रीय भाषा के रूप में आया
गाँव, शहर, कस्बे हो या महानगर
जहाँ भी जाएँ हिंदी ही होती है हमसफर

-


15 SEP 2024 AT 18:19

Part -2

कभी भूखा हू यह पता चले तो
दौड़कर वो भोजन ले आते
मेरी थाली रहती सबसे स्पेशल
क्योकि भरा रहता उनके प्यार का फल
लेट होने पर मेरा करते बेसब्री से इंतज़ार
जब मै क्लास में आता तो
खिल जाती नन्हें फूलों की बहार
अपने बर्थ डे पर बिस्कुट चाकलेट लाते
बड़े प्यार से शर्माते हुए मुझे दे जाते
जानते हैं सर दूर से आते हैं
दोस्त की तरह भी हक जताते हैं
जाते हुए कहते हैं आराम से जाना सर
गाड़ी धीरे धीरे चलाना सर
बाय सर बाय सर कहकर चिल्लाते
बच्चे जब आवाज़ लगाते हैं
उनकी आवाज़े मोहल्ले में गूंज जाती है
और मेरे चेहरे पर एक खुशी खिल जाती है

-


15 SEP 2024 AT 18:09

मेरे ये सरकारी स्कूल के बच्चे
है कितने प्यारे और अच्छे
कक्षा में घुसते ही सब देखने लगते
सिर से पैर तक का गेटअप रोज
उनके लिए तो मैं हीरो हूँ
ऐसी है नन्हें बच्चों की सोच
सब मुझे समझते हैं खास
नहीं जानते मैं भी हूँ उनके जैसा आम
बड़े होकर क्या बनोगे यह पूछने पर
बहुतों का आया मेरे जैसा बनने का उत्तर
एक दिन ना आऊँ स्कूल, तो पूछ डालते
सर आप कल स्कूल क्यों नहीं आये
लंच को मेरे देखकर पूछते
सर आज आप क्या सब्जी लाये
विश करते मुझे हर त्योहार
पूछते आपके यहाँ क्या क्या बना पकवान
कहते सर, मैडम को भी स्कूल लाओं न
आपके बच्चे का फोटो दिखलाओ ना
मेरे एक बात पर पास आ जाते
गुरू पर श्रद्धा का मुझे पाठ पढ़ाते
मेरे लिए सबसे ज्यादा प्रसाद लाते

-


11 AUG 2024 AT 11:48

बच्चे तो बच्चे होते हैं
उनका हर चीज हो जाता है माफ
शरीर की सारी गंदगी साफ करते हुए
बिल्कुल भी नहीं आती घृणा जैसी बात
क्योकि वो होते हैं अविकसित बुद्धि वाले
उनके कोमल अंग हममें वात्सल्य जगाता
पर जब बात आती है वृद्ध की तब
मन में अचानक होता है बदलाव
ऐसा क्यों, क्या वे महत्वपूर्ण नहीं
वे भी हो जाते हैं बिल्कुल बच्चे की तरह
उनके शरीर की गंदगी हमें लगती है घृणास्पद
क्या वे सेवा के पात्र नहीं...

-


10 AUG 2024 AT 5:40

बरदी कस भागत हे सबो झन
देबी देवता कर जाए बर
दाई ददा ह लरे परे हे
अऊ दउड़त हे सरग ला पाय बर
पथरा के बनाय देवता हा का सरग अमराही
जे दाई ददा के सेवा करही तें इन्हें सरग ला पाहि
लबरा चोट्टा अउ भीखमंगा मन मुखिया बने हे
हत रे मुरुख मनखे तुहर मन मं का किरा भरे हे
पढ़ई लिखई करके जे जानकर बन गे
हिसाब किताब ला नेता के चेथी मार के ले
कमइ - धमइ बर जांगर नइ हे ता बाबा बन जाव
कथा कहानी सुना सुना के लूट लूट के खाव
मनखे मनखे एक्के बरोबर के नारा ल लगाव
जात धर्म के नाम म झन छेरी कस नरियाव
भेदभाव के लद्दी ला निकल के चातर मं सकलाव
नोनि अउ बाबू दुनो ला तुमन सुग्घर पड़हाव
भई भई के परेम ला झन पैसा बर भुलाव
रिस्ता सब संग परेम भाव के तुमन हा बनाओ
हमर बोली भाखा मं तुमन लईका कर गोठियाव
छत्तीसगढ़ के नाम ला जग म सुग्घर फैलाव

-


Fetching Rupendra Gayakwad Quotes