आख़िर कब तक हम लोग Status...Status खेलते रहेंगे
क्यो हम ये नाइंसाफी झेलते रहेंगे
क्या यूंही चलता रहेगा इज़्जत को तार -तार करने का सफ़र
क्या कभी उस बेटी के लिए आयेगी कोई अच्छी खबर
क्या आँसू की धारा यूही बहती रहेगी
कब तक बेटी ही सब अपराध सहती रहेगी ..
आखिर गलियों में ये शोर क्यो हो रहा
क्यो पिता हर देहलीज पर बैठकर रो रहा हैं
क्या यूंही हम दुखों के दीप जलाते रहेंगे
क्या हर गली में जाने से घबराते रहेंगे
क्या कुसूर है हमारा..
जो पिता हर दिन घर की इज़्ज़त गवा रहा हैं
प्यारी सी आँखो से काजल हटाया जा रहा हैं
सपनो से जगा कर मौत की नींद सुलाया जा रहा हैं
बात यही नहीं खत्म हों जाती हैं
छुपते- छिपाते लड़की को घर लाते हैं
इस तरह वो अपनी झूठी इज़्जत बचाते हैं
कुछ आवाजें इस तरह ही दफ़न हो जाया करती है
कुछ दिन सुलगती है आग मोमबेतियो में...
और फिर कहानियाँ बन जाया करती हैं
हम सुनकर अफसोस मना लिया करते है
और अंजाम छोड़कर हम किस्से अपना लिया करते है...
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