तेरी मस्त नज़रों की दीद से फुर्सत मिले तो ग़ज़ल कहूँ,
तेरी इन रेशमी ज़ुल्फ़ों से फुर्सत मिले तो ग़ज़ल कहूँ,
डुबा देती हैं मुझको तेरी झील सी नीली आँखें,
अब इनसे निकले कहीं तो अतराफ् में झाँकें,
तेरी ज़ुल्फ़ों के साये तले मुझे रहना है,
वो तेरी गोद में सर रख के लेटे हुए
मेरे चेहरे को छूती हुई तेरी ज़ुल्फ़ों की दो लटों को सहना है,
कहना है तुमसे के दिल में है मेरे प्यार बहोत,
अब आ जाइये हो गया है इंतेज़ार बहोत,
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Ham to chai peene ke baad kullhad bhi nahi todte,
Aur aap dil ki baat karte hain-
परिवार के लिए अपनी पसंद की चीज़ें त्याग देना,
उनको उपर उठाने के लिए खुद अपने कँधे झुका देना,
अच्छा लगता है
लेकिन बहुत तकलीफ होती है जब बड़े आपका त्याग भूल जाएं और छोटे आपको सम्मान देना.....-
परिवार की खुशहाली के लिए मनपसंद कॅरिअर छोड़ देना,
परिवार की खुशहाली के लिए पढ़ाई का चुनाव उस ढंग से करना की जल्दी से जल्दी कमाना शुरू कर दें, दायरे में रह कर कपड़ो का चुनाव करना, जेब के हिसाब से खाने की जगहें ढूँढना परिवार के सभी लोगों को उपर उठाना आगे बढ़ाना, लेकिन शायद इसमे कभी कभी हम कुछ खो देते हैं वो है सम्मान , जब सबके लिए सब कुछ करो तो सब बेवकूफ समझने लगते हैं छोटे सम्मान नहीं करते बड़े हमारे त्याग को भूलने लगते हैं तब बहुत तकलीफ होती है....-
ज्ञान बांटना चाहिए लोगों को सिखाना चाहिए
लेकिन इतना भी नहीं कि :
सामने वाला मंत्री बनने लगे-
सुना है दिन को उसे तितलियँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनु ठहर के देखते हैं-
राह तकते हुए जब थक गईं आंखे मेरी
फिर उसे ढूंढ़ने मेरी आंख से आँसू निकले-
एक दिन हाथ से रेत पूरी तरह फिसल ही जाती है एक दिन सब कुछ खत्म हो ही जाता है, ज़िंदगी में कोई ना कोई हमारी पसंद बन ही जाता है लेकिन शायद वो बेहतर होता है बेहतरीन नहीं बेहतरीन तो वो होता है जो रब हमारे लिए चुनता है जिसे रब हमारी तक़दीर में लिखता है तो फ़िर क्या पछताना उसके लिए जो हमारा है ही नहीं ......
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