खामियां छानने को मुझमें हर इंसान है ना।
खूबी तराशने को मेरा एक “मिजाज़ी खुदा” काफी है।।-
चमकना चाहती हूं मैं अपने किरदार से,
सितारे रौशनी की तवक्को चांद से नहीं करते।।-
ठिकाना बदल जाए मेरा,
मुमकिन ही नहीं,
कफ़स-ए-इश्क़ में उनके कैद हूं मैं।-
फसाने सुने थे बड़े खूबसूरती के ताजमहल की,
नज़र-ए -हकीकत से जो वाकिफ हुए तो महज़ क़ब्रिस्तान पाया।-
हर अदा पे अपनी इठलाती हूं,
ज़र्रा तरीन बातों से खुश हो जाती हूं।
कभी मनचली कभी सेह्मी सी हूं,
मैं औरत हूं बड़ी जज्बाती सी हूं।
जीत लूं अज़ीम तरीन जंग ज़िन्दगी की,
हाए!
हमदम की एक मुस्कान पे दिल हार जाती हूं।।-
जुस्तजू-ए-मंज़िल मेरी कौन देखता है यहां,
तलकीनी बनता है बशर ख्वाहिशों से रूठ कर।-
रिश्ता आपसे कुछ खास बन गया है,
दिल से दिल का एहसास बन गया है।
आप यूहीं रहना मेरे साथ हमेशा मेरी दीदू,
आपसे मेरा लगाव अंतर्हास बन गया है।।-
अब तो मुहब्बत भी अपनी मर्ज़ी की चाहिए लोगों को,
भला बिना शर्त मुहब्बत अब होती है क्या!?
वो दौर अलग था जब आंखो से इश्क बयान होता था,
भला बिना बोले कोई बात किसी की समझता है क्या??-
खामियां बहुत है मुझमें....
एहसास होता है, जब अपने जता देते हैं।
होने को तो खूबियां भी कम नहीं मुझमें....
दर्द होता है, जब अपने उनको छुपा देते हैं।।-