"हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना"
निदा फ़ाज़ली-
"तुमने गिरते हुए पत्तों को तो देखा होगा,
अपनी हर सांस टहनी पर गवां देते हैं.
खुद को तपती धूप में जला देते हैं
कितने बेरहम शजर(पेड़) हैं, नए पत्तों की खुशी में,
पीले पत्तों को खिज़ाओ में गिरा देते हैं.
और जो गिरते हैं कदमों में शजर के,
लोग उन पत्तों को पैरों से दबा देते हैं"-
"जिसे अपनी कुशलता और क्षमता पर विश्वास होता है, वही लोगों का विश्वास जीत सकता है"
-
"कोई जंग इस बात का फैसला नहीं करती कि कौन सही था और कौन गलत. जंग तो सिर्फ़ ये तय करती है कि कौन बचा और कौन चला गया"
-
बहुत करीब से अनजान बन के गुजरे हैं वो
जो बहुत दूर से पहचान लिया करते थे..-
"रूठूंगा मैं तुमसे इक दिन इस बात पे,
जब रूठा था मैं, तो मनाया क्यूं नहीं.
पकड़ कर तेरे हाथ पूछूंगा मैं तुमसे,
हक़ अपना मुझ पर, तुमने जताया क्यूं नहीं.
इस धागे का एक सिरा तुम्हारे पास भी तो था,
उलझा था अगर मुझसे, तो तुमने सुलझाया क्यूं नहीं."-
लफ्जों का गुलाम बन कर रहने से बेहतर है कि आप खामोशी के बादशाह बन कर रहें.
-
घाव भरने के लिए ज़रूरी है कि उससे दूर हो जायें
जिसने आपका दिल तोड़ा है.-
आपको लगता होगा कि आप लोगों को जानते हैं, उनकी फितरत को पहचानते हैं, पर मैं दावे से कह सकता हूं कि कई लोग अपनी हरकतों से आपको आश्चर्य में डाल सकते हैं, चकित कर सकते हैं.— % &
-
कितना अच्छा होता है ना
जब हम हार चुके होते हैं
ठीक उसी समय कोई
कान में आकर कह दे कि
हमेशा जीतना ज़रूरी नहीं।— % &-