Rudra Srivastava   ('रुद्र')
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Joined 6 January 2019


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10 MAY 2020 AT 11:19

मैं अकेला कहाँ रहा ,
तू मेरे साथ रही।
परीक्षा मैंने दी ,
तू माथे पर टीके के साथ रही।
कड़वा भले रहा हो इम्तिहान,
तू तो दही में चीनी की मिठास रही।
हार मान लिया हो कभी मैंने शायद,
पिता संग तू ही जीत की आस रही।
जिस गलती पर पिट जाता शायद,
उसमें भी तेरी डाँट में ,
मुस्कान ही साथ रही।


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3 MAY 2020 AT 17:39

मेघ!
तू मत गरज इतना।
ले लेता है
अन्नदाता के प्राण तू ।
क्या है हैवान तू?
वे मजबूर हैं तो ,
तू इक बार न सोचेगा?
बता जरा!
वें न रहें तो ,
इस धरा को कौन सींचेगा?
है बुलंद आवाज़ तेरी तो,
हर बार चिल्लाएगा?
निरपराधों पर ही
अपने तड़ितबाण तू चलाएगा।
कर लें वर्षा से तर हमें
हम शायद सह लेगें चाहे हो जितना ।
पर तू समझ हमारी व्यथा,
मेघ! तू मत गरज इतना।

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24 APR 2020 AT 16:58

मेरी कुछ बूँदों के साथ मित्रता हो गई ,
जो वर्षा के कारण एक पेड़ पर अटक गईं थी।
जैसे ही मैंने पेड़ की शाखों को हिलाया,
वे खिलखिलाते हुए धरती पर जा गिरीं ,
फिर कहीं ओझल हो गईं।
प्रश्न -- किसे क्या मिला?
उत्तर -- मुझे शांति और उन्हें मोक्ष

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13 APR 2020 AT 19:38

तुझे क्या इल्म इस दुनिया का,
हरेक की कामयाबी शोहरत साथ नहीं लाती।

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3 APR 2020 AT 18:12

सुन लेखक!

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26 MAR 2020 AT 17:45

तेरी वजह से ,
मोहब्बत का कर्ज़दार हूँ ।
तूने मूल लिया सो लिया,
अब तो,
किश्त का भी हक़दार हूँ ।
सोचा,
कहानी तेरी -मेरी होगी।
पर,
अकेला मैं ही क्यों किरदार हूँ ।

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18 MAR 2020 AT 15:24

क्यो‍ऺ बिखेरूं मैं अल्फाज़ उनपर
जब उन्हे समेटना आता ही नहीं।
वह हँसते तो जग भी हंसता पर,
उनको खुद हँसना आता ही नहीं।

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20 AUG 2019 AT 18:03

मैंने आज सबसे हसीं मंज़र देखा,
इक बच्चे को सूखी रोटी चूमते देखा।

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3 AUG 2019 AT 18:22

तुम सच तलाशते रहो, इस जहान में।
मुर्दे हँसते रहेंगे, श्मशान में।

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30 JUL 2019 AT 17:57

अक्षर को चिरकाल से जीवित रखने का,
हकदार हूँ मैं।
अख़बार हूँ मैं।

लिखावटों से मन-मस्तिष्क तक जाने का
माध्यम हूँ मैं।
असमंजस में पड़े लोगों के लिए ,सत्य-मिथ्या की
पहचान हूँ मैं।

सुबह की चाय बनी रही हमराही ,उसका तो
हमेशा से,
कद्रदान हूँ मैं।

समाज के बंद किंवारों से झाँकता
यथार्थ हूँ मैं।
हाँ ,अख़बार हूँ मैं।



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