एक संसार जल गया तुम बिन!
एक दरिया उबल गया तुम बिन!!
छूटकर तुमसे मुझको मरना था,
ये इरादा भी टल गया तुम बिन!!
रुद्र रामिश-
हूँ मैं ही आधार।
मैं इस जग का सार हूँ,
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पानी,धधकती आग,हवा,आसमाँ,ज़मीन।
हर एक शै है एक उसी नाद के अधीन।।
پانی دھدھکتی آگ ہوا آسماں زمین
ہر ایک شے ہے ایک اسی ناد کے ادھین
रुद्र रामिश-
पीपल तले जो बैठा था जोगी,है उसका क़ौल
कहलाये जोग,चढ़ने लगे जब शजर पे मीन!!
پیپل تلے جو بیٹھا تھا جوگی،ہے اس کا قول
کہلاے جوگ،چڑھنے لگے جب شجر پہ مین
रुद्र रामिश-
वैभव संग विवेक हो..जहाँ,झुके हर माथ।
पूजनीय है चंचला..बुद्धिदेव के साथ।।
(चंचला~ लक्ष्मी/ बुद्धिदेव~ गणेश)
"रुद्र"-
वाटिका में जो बैठी थी ख़ामोश,
कब दसानन ने जाना काली है!!
واٹکا میں جو بیٹھی تھی خاموش
کب دسانن نے جانا کالی ہے
अबके इस दिल में राम आये हैं,
अबके इस दिल की भी दिवाली है!!
ابکے اس دل میں رام آییں ہیں
ابکے اس دل کی بھی دِوالی ہے
रुद्र "रामिश"-
कुम्भक जैसा बल नहीं,
नहीं नाद सम योग।
अजपा जैसा जप नहीं,
नहीं योग सम भोग।।
"रुद्र"-
निकल त्रिपुर से भैरवी
गहे नाथ का साथ।
उसी योग-निशि को कहा
सन्तों ने शिवरात।।
"रुद्र"-
उतरो मन के कूप में,
थामे 'मैं' की डोर।
सत्य-सिन्धु है इक वहाँ-
अकथ-अनूप-अछोर।।
"रुद्र"-
कहीं पड़े सूखा,कहीं
फटे घटा घनघोर।
अभी समय है,रे मनुज,
लौट प्रकृति की ओर।।
"रुद्र"-
चीख़-चीख़ पूछे हर बुद्ध!
नाम शान्ति का देकर बोलो क्यूँ करते हो युद्ध!!
उठा रहे हथियार आज तुम लेकर नाम 'जिहाद'!
पुरखे बिन हथियार लड़े थे,करो कर्बला याद!!
लड़ते हो आतंकवाद से,मक़सद है पर तेल!
ईसा की औलाद अगर हो,करो बन्द यह खेल!!
इस विकास ने ली है कितनी जानें और ज़मीन!
साम्यवाद का हटा मुखौटा मुँह दिखला,ऐ चीन!!
करते हो विस्फोट नाम देकर 'स्माइलिंग बुद्ध'!
अगर बुद्ध के ही वंशज हो,करो आप को शुद्ध!!
चीख़-चीख़ पूछे हर बुद्ध!!
"रुद्र"-