कृष्ण तुम सदा सिखाते रहें प्रेम ,
प्रेरणा बनी तुम्हारी राधे ,
मुरली की धुन पर रास रचाते
चोरी छुपे तुम माखन खाते ,
पर सामने जब तुम राधा को पाते
प्रेम गली में तुम खो जाते हैं
गोपियों का हृदय बस तुमको चाहे
तुम चाहो राधे को कान्हा ,
मोह माया के भेद से परे
प्रेम का दीप जला दो कान्हा ,
मिलन वियोग के खेल अनंत हैं
पर तुम प्राणों से प्यारी राधे ,
गीता को कहने वाला गोविंद
हुआ तुम्हारा ही राधे ।
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