मैं मृत्यु से जन्म होने तक, ली जाने वाली स्वास हूँ।
मैं निराकार से साकारता; यानी ज्ञान से अज्ञान हूँ।।
मैं साकार से निराकारता को, यानी अज्ञान से ज्ञान को भी प्राप्त हूँ।
मैं ही हर एक इच्छा और मुमुक्षा; यानी उनसे मुक्ति की आस हूँ।।
मैं अनंत की हर इच्छाओं को; अनुकूल होने पर करने वाला हूँ।
मैं ही हर इच्छाओं के जन्म का, बाधित कर्ता यानी कारक हूँ।।
मैं तिमिर की समस्त गहराई; सही अर्थों में मैं ही प्रकाश हूँ।
मैं मन का हर एक विकार; और! हर विकार से मुक्ति कर्ता यानी 'मैं प्रेम आभास हूँ'।।
मैं ही अनंत की 'हर समस्या का जातक', और! रुद्र यानी हर समस्या से मुक्ति का मैं कारक हूँ।
मैं अनंत अस्तित्व हूँ और; यथा अर्थों में शून्य कहे जाने के भी लायक हूँ।।
मैं अदिति यानी अज्ञानवश अचेतनता अर्थात्; जड़ता यानी प्रकृति या शक्ति की शुद्ध अनुभूति।
मैं ही जड़ता से कही दूर पर उसका यथार्थ, अर्थात् मैं ही हूँ शुद्ध चेतन्य की परम् बोधि।।
मैं अनंत के स्वयं को भिन्न समझते हर 'मैं', मैं ही भिन्नता का पर्याय हर एक आत्म हूँ।
मैं भिन्नता की माया का हर कण और उनका कारक, मैं ही यथार्थ एकमात्र हूँ।।
(समय - २०:३४, दिनांक - २६ दिसंबर २०२१)
-