Ruchir Mishra   (Ruchir)
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Thoughtful to write; wrote thoughtfully,
eagerous to read, zealous to explore..
Joined 18 March 2019


Thoughtful to write; wrote thoughtfully,
eagerous to read, zealous to explore..
Joined 18 March 2019
9 OCT 2024 AT 23:23

कभी-कभी सोचो तो लगता है...
माँ भी कभी एक लड़की थी
या बाप भी कभी एक लड़का था,
यह सोचना इतनी छोटी-सी बात है
लेकिन लगता है कि माँ-बाप पैदा ही बूढ़े हुए थे।

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25 APR 2024 AT 19:27

जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां भी आती हैं जब किसी क्षेत्र में या किसी विषय पर वे लोग आपको ज्ञान देते हैं जिन्हें उसका न तो ज्ञान होता है, न समझ और न ही अनुभव;
यह ठीक वैसा ही है जैसे किसी लकड़हारे का 'प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन' पर भाषण देना...
बेहतर है इन्हें नजरअंदाज कीजिए...!!

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25 APR 2024 AT 9:35

जब हम 'जीवन में जो प्राप्त है, पर्याप्त है' के सिद्धांत को समझकर संतुष्टि का भाव रखते हुए कृतज्ञ होते हैं तब जीवन में आनंद, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का संचार होता है, तब हम प्रगति के नए मार्ग आसानी से खोज सकते हैं।
पर जब हम बात-बात पर, जगह-जगह हर व्यक्ति और अवस्था में कमियां निकालने लगें तो यह दर्शाता है कि जो कुछ भी जीवन में प्राप्त है, वह अपर्याप्त है, गैरजरूरी है; जिसके लिए न तो आप में संतुष्टि है और न ही कृतज्ञता, तब जो भी अभी प्राप्त है वह धीरे-धीरे क्षीण होने लगता है.. और इसका सीधा असर पड़ता है आपके स्वास्थ्य पर, स्वभाव पर, आनंद पर और समृद्धि का तो कहना ही क्या...!!!

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24 APR 2024 AT 11:55

ईर्ष्या बेहद ख़तरनाक मनोभाव है..
ईर्ष्या का भाव तब पैदा होता है जब खुद में किसी कमी के कारण हीनभावना हो, ऐसे में ईर्ष्यालु व्यक्ति सिर्फ पलटवार करता है और दूसरों पर आरोप गढ़ता है; जबकि वह यह नहीं समझता कि इस ईर्ष्या का सबसे पहला शिकार भी वह खुद ही होता है।
यह ईर्ष्या सबसे पहले खुद को ही खाती है।
जहां ईर्ष्या होगी वहां प्रेम और सम्मान के होने की संभावना भी कम होती जाती है।

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24 APR 2024 AT 9:53

बच्चे अपने जीवन में व्यवहार की पहली सीख अपने माता-पिता से सीखते हैं, वह भी अधिकांशतः माता-पिता के कार्य-व्यवहार से, न कि उनकी सीख से; वे सीखते हैं अपने माता-पिता द्वारा अपने घर के बुजुर्गों से किया जाने वाला व्यवहार और उनके प्रति मन के भाव..यहीं से निर्धारित होता है बच्चों द्वारा अपने बुजुर्गों के लिए किया जाने वाला व्यवहार और उनके प्रति मनोभाव..
और यह बात बेटा और बेटी दोनों के लिए लागू होती है।
यहीं से तय होता है परिवार का भविष्य...!!!

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19 APR 2024 AT 20:28

आत्ममूल्यांकन कर सकने वाला नैतिक व्यक्ति ही अपनी ग़लती को ग़लती मान सकता है, उसका आत्मविश्लेषण कर सकता है और समाधान खोजने की कोशिश कर सकता है।
अमूमन अपनी ग़लती को ग़लती मान पाना ही आसान नहीं है, तो फिर आत्मविश्लेषण और समाधान की बात ही छोड़ दीजिए।

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15 APR 2024 AT 16:54

When discussion starts turning into argument and arguments turns into allegations, counter-accusations and disputes, then it is better to leave from there after put forwarding your reply.. because if you remain involved in it, they will definitely drag you down to their level.

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15 APR 2024 AT 9:18

When discussion starts turning into argument and arguments turns into allegations, counter-accusations and disputes, then it is better to leave from there after put forwarding your answer.. because if you remain involved in it then they will drag you down to their level.

जब चर्चा बहस में और बहस, आरोप-प्रत्यारोप और विवाद में तब्दील होने लगे तो बेहतर है कि अपना एक उत्तर रखकर वहां से निकल जाएं.. क्योंकि आप अगर उसमें सम्मिलित रहे तो वे आपको भी खींचकर अपने स्तर तक ही ले आएंगे।

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9 APR 2024 AT 22:51

कुछ लोग जब आपकी प्रतिभा की बराबरी नहीं कर पाते, तो आपको नीचा दिखाने के लिए आपकी निंदा करना शुरू कर देते हैं। यह खुद ही निकृष्ट कार्य है।

When some people are unable to match your talent, they start criticizing you to humiliate you.
This in itself is mel​an​choly.

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25 MAR 2024 AT 21:46

हर संतान की सांस्कृतिक शिक्षा उसके माता-पिता से शुरू होती है, अगर माता-पिता के संस्कार अच्छे होते हैं और संतान का पालन-पोषण अच्छे संस्कारों के साथ करते हैं तो बड़े होने पर वही संतान में झलकता है। इन्हीं संस्कारों के बल पर वह अपने रिश्तों में, परिवार में, समाज में सामंजस्य और संतुलन स्थापित कर पाता है, वे दूसरों का भी सम्मान करते हैं और खुद भी सम्मान पाते हैं, वे अपने कर्तव्य के प्रति सदैव जागरूक रहते हैं।

इसके विपरीत जिस संतान को अच्छे संस्कार नहीं मिल पाते, वे जीवन में सबकुछ इसके विपरीत करते हैं, अत्यंत हठी होते हैं, स्वभाव में मृदु नहीं होते, रिश्तों में, परिवार में, समाज में, कहीं भी सामंजस्य स्थापित कर पाने में सक्षम नहीं होते, वे दूसरों का सम्मान नहीं करते और खुद का सम्मान भी गवां बैठते हैं, और कर्तव्य के प्रति जागरूकता का तो कहना ही क्या..
और यह बात बेटे और बेटी दोनों पर समान रूप से लागू होती है।

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