Ruchi Singh   (अविरल रूचि)
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Joined 24 May 2021


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23 JAN 2023 AT 20:04

हिज़्र की रात की फिर सहर न हुई
खो गई ज़िन्दगी हमें ख़बर न हुई

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23 JAN 2023 AT 19:10

तुमसे हुआ पहली नज़र में इश्क़
क्या तुमको बता सकती हूँ,
अग़र हो इजाज़त तुम्हारी,
क्या तुम्हे अपना बना सकतीं हूँ?

जब से ये दिल लगाया तुमसे
रातों की नींदें गवाईं तब से,
तुम्हारे ख़्वाब दिखा के क्या मैं
अब इनको सुला सकती हूं??

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22 JAN 2023 AT 10:14

हर रोज उम्मीद जगाए बैठती
कि शायद आज तू आएगा,
बड़ी शिद्दत से करती हूं इन्तज़ार तेरा
क्या कभी ये मुकम्मल हो पायेगा?

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21 JAN 2023 AT 22:40

ना जाने क्यों तेरी ओर खिंचती जा रही हूँ
कुछ अनकहे जज़्बातों में घिरती जा रही हूँ
क्यों करें खामोशियों में इस चाहत को दफ़्न
खुद के सवालों में ही उलझती जा रही हूँ!!

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17 JAN 2023 AT 7:41

बनो फूल कुमुदिनी सा सबके जीवन में महको तुम
शिष्टाचारी विनम्र बनो फिर शौर्याग्नि सी दहको तुम

रहे लक्ष्य सदा ध्यान तुम्हें अपनी मंजिल पाती जाओ
करो पार बुलंदी पंखो से बन पाखी खुदको चहकाओ

कड़ी परीक्षा में तप-तप कर सोने सा तुम्हें निखरना है
रुकना-थकना-गिरना होगा फिरभी उठ कर चलना है

देती शुभाशीष जन्मदिन पर अविरल तुम्हें बधाई हो
पूरा करने हमारे सपनों को प्यारी 'प्रचिता' आई हो!!

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13 JAN 2023 AT 23:10

जो मुक़म्मल मुलाक़ात हो तुझसे दास्ताँ बन जाए
मैं बनूं तेरी रहनुमा तू मेरा पासबाँ बन जाए !!

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13 JAN 2023 AT 13:18

सुख में रहना मेरे पास प्रभु, दुख में भी साथ निभाना
जीवन के कठिन संघर्षों में, सदा मेरा धैर्य बढ़ाना !!

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11 JAN 2023 AT 22:44

जब कभी मुलाक़ातें होंगी
बस मीठी मीठी बातें होंगी

भूलेंगे सारे गिले ओ शिक़वे
मोहब्ब़त भरी सौग़ातें होंगी

दिल के ख़्वाब तब पूरे होंगे
दूर सभी स्याह रातें होंगी

ख़ामोशियाँ कहीं खो जाएंगी
तेरी गुनगुनाती आवाज़े होंगी

ख़्यालो में खोए रहेंगे दोनों
कुछ खट्टी मीठी यादें होंगी

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10 JAN 2023 AT 23:24

तुझे याद कर बस मैं ही तड़पी हूँ शायद
कभी तो मिल मुझे भी तेरा हाल देखना है!!

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10 JAN 2023 AT 23:13

दिल को रुसवा कर के जब से सनम गया
नींदों में ख्वाबों का कारवां तब से थम गया

रही ज़ीस्त में बाकी अब कोई आरज़ू नहीं
राग़-ए-उल्फ़त सुनाने का हसीं मौसम गया

उम्र भर साथ निभानें की कसमें खाने वाला
तन्हाइयों में छोड़ के वो प्यारा हमदम गया

अश्क़ आँखों मे सजा के जब लब मुस्कुराए
आँखों का बहता पानी कोरों में जम गया

न याद आती है न ही कोई उम्म़ीद सताती है
गुज़रे गमों का हिसाब कहाँ कभी कम गया

न जीने की तमन्ना रही न ही म़ौत का इंतज़ार
अब ये सिलसिला तो हररोज़ का ही बन गया

दिल की दुनिया में मिले ज़ख़्म अभी हरे हैं
किसी ज़ख्म पे कभी, कहाँ कोई मरहम गया

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