मैंने सोचा था कि तुम हमदर्द बनोगे,
तुम तो सरदर्द बन गए। 😂— % &-
तूने आंँखों से कोई बात कही हो जैसे।
तब बात ही कुछ और थी वो समय ही कुछ और था,
अब तो बस ये दिन आता है तब इस दिन का चलता एक दौर था।-
रह जाती है बाकी कहीं कोई ना कोई कसर।
लिखने से ही तो है मेरी ज़िन्दगी का गुजर बसर।-
प्रिय 2019,
तुम जब थे तो लगता था कि तुम परेशानियों, मुश्किलों और उलझनों से भरे हो और जब तुम नही हो तो बस तुम्हारी याद आती है। मैं क्या सोचती थी कि जब तुम चले जाओगे और नया साल आएगा तो सब कुछ वैसा ही होगा जैसा मैंने सोचा है लेकिन ये सोचना ही मेरी गलती थी। बीते दो सालों ने तुम्हारी खूबी का एहसास दिलाया, तुम क्यों खास थे ये बताया। तुम कितने भी मुश्किल क्यों ना थे लेकिन कभी हमारी आज़ादी नही छीनी। हम व्यस्त थे, हम खुश थे। तुम क्यों चले गए?
तुमने यह साबित कर दिया कि किसी पल की कीमत उसके चले जाने के बाद ही समझ आती है। ज़िंदगी के जो अच्छे पल जिये वो 2019 में ही जिये। हालांकि 2019 ने बहुत कुछ छीना भी लेकिन साल ने अलविदा कहते-कहते उसकी भरपाई भी की थी। 2019 के बाद बस साल बदल रहा है, प्रगति तो वहीं रुकी है। मैं बस शारीरिक तौर पर 2022 में हूँ, मानसिक तौर पर अभी भी वहीं 2019 मे ही हूँ। पता नही क्यों लेकिन मैं 2019 से आगे बढ़ भी नही पाती या ये समझ लीजिए कि बढ़ना नही चाहती। मुझे ठहराव चाहिए था जीवन में, यहाँ तो मैं रुक सी गई हूँ। ये दो साल कैसे बीते कुछ समझ नही आया। सबकुछ तो वैसा ही है। हाँ, बस कुछ लोग बिछड़ गए हैं और कुछ लोग बदल गए हैं। काश कुछ ऐसा होता कि मैं वापस तुम तक जा सकती, फिर से तुम में जी सकती, तुम्हारे साथ सुकून और आज़ादी के कुछ पल बिता सकती। काश! तुम ना जाते।-
मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से
याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया।
- जौन एलिया-
आप काशी आते हैं और काशी-दर्शन करते हैं,
यह आपका भाग्य है।
मैं काशी में जन्मी हूँ और काशी में जीती हूँ,
यह मेरा सौभाग्य है।-
मिज़ाज में गर्मजोशी और आँखों में बात लिए चलती हूँ,
मेरी आत्मा 'बनारस' है...
और बनारस मैं अपने साथ लिए चलती हूँ।-
तुम और तुम्हारा लिखना
तुम दुःख के बारे में लिखते हो,
तुम संघर्ष की बात करते हो,
तुम रहते हो महलों में और...
तंग हालात के मुद्दे छेड़ते हो।
ज़रा बताओगे और कितना नक़ाब पहनोगे,
बस कुछ भी लिख जाने के लिए,
तुमने तो कभी कुछ खोया ही नही,
क्या पहचानोगे कि तड़प होती क्या है कुछ पाने के लिए।
छटपटाहट, कमी और गरीबी से कोई पाला नही,
फिर कैसे पता कि ये रात है कोई उजाला नही,
महसूस करना होता है जनाब तुम तो बस शब्दों की बौछार करते हो,
तुम्हारा लिखना बस ऐसा है जैसे तुम ठन्डे कमरे में होकर गरमी की बात करते हो।
मुझे चुभते हैं ये झूठे शब्द, झूठे अनुभव और ये झूठी झलक,
कदम कभी रहते नही ज़मीं पर तुम तो रहते हो आसमां तलक,
कभी मिट्टी छुई नही और फसल उगाने की फरियाद करते हो,
ज़मीं पर पैर रखा नही कभी और खुरदुरेपन का बखान करते हो।
तुम्हे लगता नही कि तुम्हारा कुछ कहना बेकार है,
ग़म नही तुम्हारे पास तुम्हारा दिल खुशियों से आबाद है,
फिर क्यों जब गिन नही सकते कुछ तो बेमतलब हिसाब करते हो,
कुछ खोने जैसा जब डर नही तो फिर क्यों कुछ खोने से डरते हो।-