आखिर आ ही जाते हो
अचानक ही, किसी कोने में रखी याद की तरह,
धुंध से निकले पहाड़ की तरह,
रेगिस्तान में नीम की तरह,
बहते पानी के किनारों पे बिछी चट्टानों की तरह,
लंबे रास्तों मे खूबसूरत दृश्य की तरह,
उमस भरे मौसम में आईस-क्रीम ट्रॉली की तरह,
शब्दों की कतार में पूर्णविराम की तरह।
और एक बार जो आते हो
जुबां, दिल, दिमाग मे,
तो कुछ दिन रुककर जाते हो,
मेहमान की तरह मेरे वक़्त का लुत्फ उठाते हो।
अगर-मगर के जाल में फेंक जाते हो
पुरानी यादों की बारिश मे भीगा जाते हो
सवालों का एक टूटा पुल छोड़ जाते हो।
जब आते हो तो ऐसे आते हो
जैसे जाना ही नियति हो,
जैसे रुकना तुम्हे आता ही न हो,
जैसे सब खत्म-सा हो।— % &
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