कोई क्या जाने उसकी पीड़ा
जिसे सुनने वाला कोई नही |
कोई क्या समझे भला समझ
उसकी जो , खुद को ही समझता नही |
आस - पास है भीड़ बहुत अकेलेपन का
साझेदार नही | मन है मनाकार नही |
कहाँ कोई सुनता है बिना शब्द शोर
मौन हृदय की पुकार को ..
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मै नही जानती कि आगे अच्छा क्या होगा ,
मै नही जानती जो चल रहा है वक्त अच्छा है या
बुरा | मै नही जानती मेरा आभाव क्या है ,
मै नही जानती मेरी आवश्यकता क्या है |
है अन्तर मे खाली सा कुछ तो, है जो मुझसे
बिछड़ा है | है क्या मुझे नही पता है |-
देखता तो होगा तू मुझे हरपल ,
नही दिखता मुझे तो क्या ..
छूट जायेगा एक दिन मेरा भी तुझे देखना...-
तुम्हे तो जाना ही था ,
तुम चले गये ..
मगर छोड़ गये..
पीछे, ढेर सारे सवालो से
जूझता बोझिल मन ,
एक उम्मीद का बंधन,
खुद मे
शिकायते और जीवन मे एक
नई कुंठा |
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जगह न मिली तो शिकायती कोने में
ही जगह बना ली, अक्सर रही खुफ़हमी यह जगह ही
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शब्दों की कीमत भी व्यक्ति से तय होती है ,
महत्वहीन हो चुके व्यक्ति के शब्द भी अर्थहीन,
निर्थक, महत्वहीन हो जाते हैं |-
क्षण -क्षण बदलता है ,
क्षण-क्षण चलता है ,
भीतर ही पलता है ,
मै उसकी मर्जी में हूँ ,
वो मेरी मर्जी से अलग है...-