खट्टी - मीठी यादों संग , ये साल भी गुजर गया।
पिछली खास मुलाकातों संग , ये साल भी गुजर गया।
उतार चढ़ाव कई आए, बीते हुए सालों में।
तजुर्बे की रंग चढ़ी काले- काले बालों में।
कि जैसे उम्र की डोर से एक मोती है गिरा,
जैसे पतझड़ के बाद, पेड़ फिर से हरा भरा।
अब नई उमंग लेकर, अब नई सुबह लेकर
साल ये आएगा एक नई तरंग लेकर।
पल- पल की प्यारी यादों को भेंट कर,
जीवन में भरकर रंग, ये साल भी गुजर गया।
पिछली खास मुलाकातों संग , ये साल भी गुजर गया।-
I'm a student.
DOB- 27 Aug 1998
"हजार सपने संजोए है इन आँखों ने,
ह... read more
ना-उम्मीदीयों के डर से आज उभरना है,
दृढ़-संकल्प कर जीवन में आगे बढ़ना है।
रख हौसला, कर फैसला बस कर्म करता जा,
अब रूकना नही, ना ही पीछे मुड़ना है।
अब कर लिया है इरादा जीत का
आखिर तुझे ही तो अपना भाग्य बदलना है।।
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कुछ आदतें....जो चाह कर भी नहीं छुटती,
और तुम्हें बेहिसाब प्यार करना मेरी आदतों में शामिल हैं......-
बे-फिजूल-सी बातें पूछ ही लिया करती हूँ .....
शायद इस बहाने से ही उनसे बात हो जाए ।
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आज भी एक सवाल छिपा है दिल के किसी कोने में......
आखिर क्या कमी रह गई थी मुझे तेरी होने में......-
कभी टूट कर बिखर जाती है, कभी सिमटकर संभल जाती है
जिंदगी एक जंग सी है जनाब, पलभर में बाजी पलट जाती है।-
सुकुन तो मिला था सबको, पर ये कैसा मंजर था
भीषण महामारी का भय अब जनमानस के अंदर था
पर मानव तो है लापरवाह नही कोई भी सतर्क हुआ
आखिर फिर से वह प्रलयंकारी कोरोना सफल हुआ
बादल छटे नही थे अब तक कुदरत का ये कैसा हठ था
एक बार फिर से इस अम्बर पर छाया संकट था
तरस रहे थे जीवन को सब, साँस लेना भी दूभर हुआ
कहर प्रकृति का ऐसा कि जीवन 'सिलिंडर' पर मजबूर हुआ
त्राहि-त्राहि मची हुई थी, सर्वत्र लाशों का था ढेर लगा
सैलाब उमड़ता प्रलयकाल का, पर किस्मत से है कौन लड़ा?
लाशें बंद थी पैकेट मे और मुर्दाघर भी था भरा पड़ा
शमशानों मे चिता जलाने मानस कतार मे खड़ा हुआ।
पीछे हटते लोग जब अपनो की लाशों को काँधा देने से
तब आए आगे कई हाथ जो गैरों के थे रिश्ते-नाते पल भर के,
फर्ज निभाते हुए कई नर्सों ने भी अपनी जान गंवाई थी
पर इस विपदा की घड़ी मे सियासत भी खूब गरमाई थी
कहीं दवाई तो कहीं ऑक्सीजन की कीमत भी खूब बढ़ाई थी
तड़पता रहा मरीज तो कहीं नर्सों की मुट्ठी गरमाई थी
रेमडिसिवीर की जमाखोरी ने लाशों की तादाद बढ़ाई थी
ऐसे दुर्दिन भी आएंगे किसने सोचा था ये सब
अपने भी ना हाथ लगाएंगे होगा कुछ ऐसा भी अब
हार निकट थी जीवन की और कम्पित सहमा सा था मन
उम्मीदों के सूरज पर जब छा चुका था अब ग्रहण
एक बार फिर कहर कोरोना का पीक पर आया है
अपनो से जुदा कर दिया, कैसा यह कहर बरपाया है।
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