Rubina Sidar   (miss rubi)
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Poetry....My Passion

No one my favourite ...All deserves love & respect
Joined 6 January 2019


Poetry....My Passion

No one my favourite ...All deserves love & respect
Joined 6 January 2019
22 NOV 2022 AT 22:07

यादें रह जाती हैं,
अक्सर भूल जाने के बाद l
अजी दुनिया का दस्तूर है
अच्छाईयाँ नजर आती हैं
लोगों के गुजर जाने के बाद l
वो कहते हैं गुस्ताखी माफ करें
शब्दों को समेटने लगते हैं
शब्दों के निकल जाने के बाद l
यूँ ही दुहाई दिल देता नहीं
जनाब;अफ़सोस रह जाती हैं
रेतों के मुठ्ठी से फिसल जाने के बाद l

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20 NOV 2022 AT 21:53

वो लम्हें फिर से
दोहराने को जी करता है
दोस्त तेरी दोस्ती के
पल चुराने को जी करता है
ठहर सी गई है ज़िंदगी
अपनों के संग फिर से
खिलखिलाने को जी करता है
क्या दौर था वो भी
कुछ न होके भी सब कुछ था
यारों की वो बस्ती
फिर से बसाने को जी करता है
वो लम्हें फिर से
दोहराने को जी करता है l

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22 OCT 2022 AT 13:01

शब्द कभी जो निःशब्द बन गये
क्या पढ़ी तुमने कभी मौन की भाषा
तार पते पर फिर भी पहुँच गये
यही है सच्चे प्रेम की परिभाषा

अश्क कभी जो नदी बन गये
क्या पढ़ी तुमने कभी नैन की भाषा
धूल गये सारे बैर मन के
यही है सच्चे प्रेम की परिभाषा

अपने सारे गैर बन गये
क्या पढ़ी तुमने कभी बेचैन की भाषा
प्रेम हृदय में फिर भी बसा रहे
यही है सच्चे प्रेम की परिभाषा

रात अंधियारे बन गये
क्या पढ़ी तुमने कभी रैन (रात) की भाषा
त्याग चाँद की चाँदनी के लिये
यही है सच्चे प्रेम की परिभाषा

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8 JUN 2022 AT 23:03

अगर मौन हो तुम,
इसकी वजह क्या है
बेशक कह दे मुझसे,
तेरी रजा क्या है
चाँद तारे तोड़ लाऊं,
ये न कहना मुझसे
पूछना है तो पूछ ले,
मेरी वफ़ा क्या है
अगर दे न सकूँ जवाब, हाजिर हूँ..
बता मेरी सजा क्या है
पर मौन होकर भी सब बयां कर देना
ऐसी भी तेरी ये ख़फ़ा क्या है !!

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1 JUN 2022 AT 22:07

महज तिनकों से वो बुन लेती हैं अपना घोंसला
कभी इस डाल तो कभी उस डाल पे
करती हैं कोशिशें उसे सहेजने की
फिर भी टूट जाते हैं वे घोंसले
उन तमाम आँधी तूफानों से
पर रुकते नहीं कभी थकते नहीं
बना लेते हैं फिर से नये घोंसले
क्योंकि.....
टूटे नहीं होते हैं उन बेजुबानों के हौसले ll

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26 DEC 2021 AT 21:20

रहने दे कुछ कर्ज,
तेरा मुझ पर
दुनिया का उसूल है..
किसी से कुछ लोगे
तो वापस देना होगा।
इसी बहाने तुमसे
दोबारा मिलना होगा।।

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11 JUL 2021 AT 22:11

साक्षी

आज सुबह सुबह मेरे आँगन में
प्रकृति अपना करतब दिखा रही थी
धीरे धीरे अपने कदमों से, एक हलचल सी मचा रही थी।

जैसे ही मैं बाहर आई, एक अशब्द आवाज आ रही थी
मानो करतब शुरू करने की, घोषणा की जा रही थी
नन्ही किरदार के रूप में पक्षियाँ पेडों पर चहचहा रही थी
मानो मुझमें प्राण भरकर, फिर से मुझे जगा रही थी ।

नाचती हुई शीतल वायु मस्ती में लहरा रही थी
मानो छूकर मेरे अंतर्मन को, मेरे रग रग में समा रही थी
पेड़ भी खुश होकर ,अपने पत्तों को हिला रहे थे
मानो सदा खुश रहने का, हमें संदेश सुना रहे थे।

अब बारी थी बादल दादा की,
जो बेफिक्र दौड़ लगा रहे थे
मानो भ्रमित करने को मुझे,
अपनी विशेष योजना बना रहे थे।
फिर गिर पड़े बूँदों की लडी ,
जो मन को मेरे भीगा रही थी
मैं स्तब्ध सी देखती रह गई
मानो प्रकृति;अपने करतब का,
मुझे "साक्षी" बना रही थी।।

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11 JUN 2021 AT 16:28

दे दिया जिसने सब कुछ अपना
माँगने की उससेे कुछ दरकार नहींं
गर माँग लिया जो तुमने उससेे
करता तुमको कभी शर्मसार नहीं
परे स्वार्थ से निःस्वार्थ होकर
सदा देता ही चला जाता है
कर परिभाषित निःस्वार्थ प्रेम
"दाता" वही कहलाता है।
वो माँ,खुदा, धरा प्रकृति
करती जो जीवन को पोषित
त्याग प्रेम ममता की मूरत
लिप्सा से जो न है कभी दूषित
पाने की जिसे कुछ चाह नहीं
सिर्फ देना ही जिसे सब आता है
दे शीतलता, समाके अपने भीतर सब कुछ
बेशक.... "सागर" वही कहलाता है।।

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10 MAY 2020 AT 9:42

एक दिन मैंने खुदा से पूछा

आप कभी दिखते ही नहीं,

कहा खुदा ने सुन मेरी बच्ची;

मैं रहता हूँ हरदम पास में तेरी

सदा लुटाती है जो प्यार तुझ पर

मेरी ही परछाई...

वो माँ है तेरी...

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10 MAY 2020 AT 8:42

माँ समझ न पाऊँ प्यार मैं तेरा
कितना तू सबसे करती है

तेरे आँचल की पोटली में इतना
तू प्यार कहाँ से भरती है

कभी खतम होता ही नहीं है
चाहे जितना भी तू देती है

तू है ममता का सागर; और
प्यार तो तेरा मोती है

माँ कैसा तेरा प्यार है
बैठकर मैं सोचूं यही

कितनी बड़ी मैं हो गई हूँ
पर माँ तू अब भी बदली नहीं ।।

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