यादें रह जाती हैं,
अक्सर भूल जाने के बाद l
अजी दुनिया का दस्तूर है
अच्छाईयाँ नजर आती हैं
लोगों के गुजर जाने के बाद l
वो कहते हैं गुस्ताखी माफ करें
शब्दों को समेटने लगते हैं
शब्दों के निकल जाने के बाद l
यूँ ही दुहाई दिल देता नहीं
जनाब;अफ़सोस रह जाती हैं
रेतों के मुठ्ठी से फिसल जाने के बाद l-
No one my favourite ...All deserves love & respect
वो लम्हें फिर से
दोहराने को जी करता है
दोस्त तेरी दोस्ती के
पल चुराने को जी करता है
ठहर सी गई है ज़िंदगी
अपनों के संग फिर से
खिलखिलाने को जी करता है
क्या दौर था वो भी
कुछ न होके भी सब कुछ था
यारों की वो बस्ती
फिर से बसाने को जी करता है
वो लम्हें फिर से
दोहराने को जी करता है l-
शब्द कभी जो निःशब्द बन गये
क्या पढ़ी तुमने कभी मौन की भाषा
तार पते पर फिर भी पहुँच गये
यही है सच्चे प्रेम की परिभाषा
अश्क कभी जो नदी बन गये
क्या पढ़ी तुमने कभी नैन की भाषा
धूल गये सारे बैर मन के
यही है सच्चे प्रेम की परिभाषा
अपने सारे गैर बन गये
क्या पढ़ी तुमने कभी बेचैन की भाषा
प्रेम हृदय में फिर भी बसा रहे
यही है सच्चे प्रेम की परिभाषा
रात अंधियारे बन गये
क्या पढ़ी तुमने कभी रैन (रात) की भाषा
त्याग चाँद की चाँदनी के लिये
यही है सच्चे प्रेम की परिभाषा-
अगर मौन हो तुम,
इसकी वजह क्या है
बेशक कह दे मुझसे,
तेरी रजा क्या है
चाँद तारे तोड़ लाऊं,
ये न कहना मुझसे
पूछना है तो पूछ ले,
मेरी वफ़ा क्या है
अगर दे न सकूँ जवाब, हाजिर हूँ..
बता मेरी सजा क्या है
पर मौन होकर भी सब बयां कर देना
ऐसी भी तेरी ये ख़फ़ा क्या है !!
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महज तिनकों से वो बुन लेती हैं अपना घोंसला
कभी इस डाल तो कभी उस डाल पे
करती हैं कोशिशें उसे सहेजने की
फिर भी टूट जाते हैं वे घोंसले
उन तमाम आँधी तूफानों से
पर रुकते नहीं कभी थकते नहीं
बना लेते हैं फिर से नये घोंसले
क्योंकि.....
टूटे नहीं होते हैं उन बेजुबानों के हौसले ll-
रहने दे कुछ कर्ज,
तेरा मुझ पर
दुनिया का उसूल है..
किसी से कुछ लोगे
तो वापस देना होगा।
इसी बहाने तुमसे
दोबारा मिलना होगा।।
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साक्षी
आज सुबह सुबह मेरे आँगन में
प्रकृति अपना करतब दिखा रही थी
धीरे धीरे अपने कदमों से, एक हलचल सी मचा रही थी।
जैसे ही मैं बाहर आई, एक अशब्द आवाज आ रही थी
मानो करतब शुरू करने की, घोषणा की जा रही थी
नन्ही किरदार के रूप में पक्षियाँ पेडों पर चहचहा रही थी
मानो मुझमें प्राण भरकर, फिर से मुझे जगा रही थी ।
नाचती हुई शीतल वायु मस्ती में लहरा रही थी
मानो छूकर मेरे अंतर्मन को, मेरे रग रग में समा रही थी
पेड़ भी खुश होकर ,अपने पत्तों को हिला रहे थे
मानो सदा खुश रहने का, हमें संदेश सुना रहे थे।
अब बारी थी बादल दादा की,
जो बेफिक्र दौड़ लगा रहे थे
मानो भ्रमित करने को मुझे,
अपनी विशेष योजना बना रहे थे।
फिर गिर पड़े बूँदों की लडी ,
जो मन को मेरे भीगा रही थी
मैं स्तब्ध सी देखती रह गई
मानो प्रकृति;अपने करतब का,
मुझे "साक्षी" बना रही थी।।
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दे दिया जिसने सब कुछ अपना
माँगने की उससेे कुछ दरकार नहींं
गर माँग लिया जो तुमने उससेे
करता तुमको कभी शर्मसार नहीं
परे स्वार्थ से निःस्वार्थ होकर
सदा देता ही चला जाता है
कर परिभाषित निःस्वार्थ प्रेम
"दाता" वही कहलाता है।
वो माँ,खुदा, धरा प्रकृति
करती जो जीवन को पोषित
त्याग प्रेम ममता की मूरत
लिप्सा से जो न है कभी दूषित
पाने की जिसे कुछ चाह नहीं
सिर्फ देना ही जिसे सब आता है
दे शीतलता, समाके अपने भीतर सब कुछ
बेशक.... "सागर" वही कहलाता है।।-
एक दिन मैंने खुदा से पूछा
आप कभी दिखते ही नहीं,
कहा खुदा ने सुन मेरी बच्ची;
मैं रहता हूँ हरदम पास में तेरी
सदा लुटाती है जो प्यार तुझ पर
मेरी ही परछाई...
वो माँ है तेरी...-
माँ समझ न पाऊँ प्यार मैं तेरा
कितना तू सबसे करती है
तेरे आँचल की पोटली में इतना
तू प्यार कहाँ से भरती है
कभी खतम होता ही नहीं है
चाहे जितना भी तू देती है
तू है ममता का सागर; और
प्यार तो तेरा मोती है
माँ कैसा तेरा प्यार है
बैठकर मैं सोचूं यही
कितनी बड़ी मैं हो गई हूँ
पर माँ तू अब भी बदली नहीं ।।-