जब हम बहोत खुश और संतुष्ट थे
न दुनिया की समझ न किसी की टेंशन
बेपरवाह थे और लोगों से अंजान
बेसुध अपनी ही धुन में , बेफिक्र हमेशा
ना कोई जिम्मेदारी और न समझदारी
मंजिल तो पता ही नहीं बस सफर के मजे लेते थे
बस एक दुनिया थी पहले स्कूल फिर कालेज
दिन भर घूमना,मौज-मस्ती और हंसी-ठिठोली
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