माफ़ी अब ना कागज़ में, ना क़दमों में, ना प्यार में चाहिए।
POK तो अब छोटी चीज़ है, अब हमें कराची, इस्लामाबाद और लाहौर भी चाहिए।-
जब जीवन में डाउनफॉल हो रहा हो तो सबकी बोली चुभती है।
कोई प्यार से कह दे तो भी आँसू झरने की तरह सिसकते हैं।
मानो अब खुद की आन, बान, शान तो रही ना,
और मुझे कोई मोटिवेशन दे दे और मैं मोटिवेट हो जाऊँ ऐसा कोई हो ही ना।
खुद अपनी हार में डूब सा गया हूँ,
जीत की दौड़ में कहीं गुम सा गया हूँ।
मेरी परछाइयों से अब डरकर
खुद को ही जालिम दुश्मन अपना मान सा गया हूँ।
जो सबको बात छोटी सी लगती है मैं उस बात में कहीं दब सा गया हूँ।-
अंधेरों में अब जुगनुओं की किरण से राह नज़र नहीं आ रही है।
कोयल मीठे सुरों में गा तो रही है पर अब वो मन को नहीं भा रही है।
कुछ ऐसे जीवन में व्यतीत हो गया है,
अब वर्तमान से ज़्यादा गंदा तो मेरा अतीत हो गया है।
ओ कान्हा! अब मेरे जीवन रथ के तुम ही सारथी हो,
तुम देवता, तुम चालक और तुम ही मेरी आरती हो।
जब रथ के सारथी कान्हा होंगे,
तो उसमें सवार बजरंगबली भी होंगे,
तो ऐसे रथ में बैठे मैं हार कैसे मान जाऊँ?
इनके रहते मैं दर-दर भटकते कहाँ जाऊँ?
क्योंकि अब अंधेरों में जुगनुओं की किरण से राह नज़र नहीं आ रही है।
कोयल मीठे सुरों में गा तो रही है पर अब वो मन को नहीं भा रही है।-
वृंदावन में बाँकें बिहारी जी की मंदिर में शांती,
खाटू श्याम जी की मंदिर में ख़ुसी,
और
देवसर वाली माता की मंदिर में सब कुछ मिल जाता है॥
अयोध्या के श्री राम जी की मंदिर में जीत,
उज्जैन के श्री महाकालेश्वर जी की मंदिर में शक्ती,
और जगगनाथ पूरी जी की मंदिर में सब कुछ खिल जाता है॥
श्रद्धा भाव तो दृढ़ रखो पर दिल हमेशा नरम रखो,
क्योंकि अगर ख़ुद ही लाखों करोड़ों पाप कर बैठे रहोगे,
तो कही भी चले जाओ सब कुछ छीन जाता है॥-
तुम ही कृष्णा गोविंद हरे मुरारी।
तुम ही राजा तुम ही बाँके बिहारी॥
तुम ही ग्वाले तुम ही रखवाले।
हो इस जग के तुम पलनहारे॥-
चाँद की रोशनी से लाख गुणा,
शाम की चमकान अच्छी होती है।
कड़कती धूप भरी उम्मस से लाख गुणा,
सावन अच्छी होती है।
जीवन का भार उठाए घूमते रहना,
थके हारे बैठे रहने से लाख गुणा,
चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कान अच्छी होती है॥-
जब अकेला सा लगता हे तब वो Offline हो जाती है।
मुरशद॥
बताओ उसे कि बिना पंख के मोर अच्छे नही लगते ॥-
कई उस पल को याद करते करते दुखी हो गये।
तिरंगा से लिपटा हुआ देख कई मायूस हो गये॥
ज़रूर उन अमर शहदतो के बाप भाईं बेटा होगा या माँ बहन बेटी ही होगी,
जो इस महान गणतंत्र दिवस में भी रोई होगी॥-
क्यू में रो नही पा रहा हूँ।
सोते वक्त तो आँखें भर आती हे॥
उठता हूँ रोने, पता नहि आँसू कहा चली जाति हे।
मुझे ना तुम्हरि आदत सी होने लगी है।
में ना हर रोज़ इनहि आदतों के साथ,
सोना चाहता हूँ।
आँखें भर आयी है मेरी तुम्हें गले से लगाकर बस
रोना चाहता हूँ॥-