What have you done,
Amid this situation
You must run.
Creating the creation,
Abandoning society
Inside isolation.
Dealing with anxiety,
Like never before
Of this variety.
Illness at the door,
Knocking loud
Knocks some more.
Far from the crowd,
In solace of hills
Let's rest in shroud.
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जब थक जाता हूँ तेरी परछाईं से बात करते करते।
जब क्षणिक है इस ब्रम्हाण्ड का जीवन,
क्षणिक है मेरा मन और यह नश्वर तन
फिर अभिमान करूँ भी तो किस क्षण में;
व्यथित रहूँ या श्रृंगार करूँ हर्ष से हर क्षण।
मसान में सत्य तलाश रहा सत्य से अनभिज्ञ हूँ,
जल रहा हूँ हर क्षण निर्वाण का गंतव्य हूँ
मष्तिष्क के दर्पण पर प्रतिबिम्बित है वह क्षण;
जिस क्षण में मैं बंधा नहीं, रुका नहीं, सर्वज्ञ हूँ।
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Meanwhile, in the other room there was utter darkness. Some spider still had enough innovation to spin the web. At the last of this quest there was gore and blood. The last of Prophet's life meant last of human faith in God.
And at last humanity prevailed.
Amen.-
मैं देखता हूँ तुम्हें,
आज भी वहीं जहाँ तुम कभी नहीं थी।
देखते देखते थक जाता हूँ,
पलकें झपकती नहीं हैं
आँखें पथरा जाती हैं,
आँसू निर्झर बहते हैं मेरी आँखों के ओट से।
मैं सुनता हूँ तुम्हें,
वैसे ही जैसे तुमने मुझे अनसुना किया था।
सुनता हूँ तुम्हें मेरे कानों में आहिस्ते से कहते हुए,
वे तीन शब्द, जिनकी माया से दुनिया ग्रस्त है।
किन्तु मेरे होंठ खिलखिलाते हैं,
मुस्कान स्वतःस्फूत होती है।
फिर वही कर्कश और वही लांछन,
जैसे कि मैंने जानबूझ कर
अपनी नियति निर्धारित की हो।
मैं सोचता हूँ तुम्हें,
आज भी जैसे तुम भी सोचती होगी मुझे।
जब तुम देखती होगी मुझे,
अपने मन मस्तिष्क के दर्पण में।
कितनी बातें बाकी थीं
कितनी यादें बनानी थीं हमें,
जिसके सहारे ये जीवन पार हो जाता।
चला जाता किसी नदी के मुहाने तक
विलीन हो जाता तुममें
और समय ठहर जाता सदा के लिए।-
कभी कभी किसी से कुछ बातें होती हैं,
वो सिर्फ एक रात की मुलाक़ातें होती हैं।
मिल जाती है कोई दिलरुबा उसी रात में,
वर्ना ये सारी बातें अनकही सौगातें होती हैं।
मेरे दिल में वो धड़कती रहती है हमेशा,
जिसके लिए मेरी सुब्ह और रातें होती हैं।
जब कभी याद आती है वो तन्हाई में,
तब जाके यादों की बरसातें होती हैं।
'रुस्तम' की दिल्लगी ही ऐसी कुछ है यारों,
जैसे सूखे दरख़्तों की हयातें होती हैं।-
कल वो आये तो बातें उससे हज़ार करूँ,
आगे जाऊं कहाँ क्यों न उसका इंतजार करूँ।
जब वो आये चांदनी से छन के जमीं पे,
सुब्ह की तजल्ली शबनम पर निसार करूँ।
वो अगर आया नहीं कल भी तो क्या होगा,
अब उस पर नहीं तो किस पर एतबार करूँ?
वो मेरा रहनुमा बने तो मंजिल मिल जाये,
बस यही सोच कर ख़ुदाई बार बार करूँ?
दौर-ए-ग़फ़लत में अब मर रहा है इंसान,
क्यों मन मार के खुद को बेज़ार करूँ...?-
मैं कब तक मिलता रहूंगा खुद मुझसे ही,
हर रात के चौथे पहर से लेकर
मुझे दुबारा नींद आने तक
और फिर स्वप्न में भी।
किसी मुन्तज़िर की तरह,
जो तलाश रहा हो खुद को
खुद की दुनिया में
खुद के बनाये हुए पात्रों के बीच,
पता नहीं कबसे।
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मैं चला जा रहा हूँ किस डगर मुझसे मत पूछो,
कब तक चलेगा मेरा ये सफ़र मुझसे मत पूछो।
मेरे हिज़्र से मेरा दामन छूट गया है या नहीं,
ये सवाल उससे पूछो मगर मुझसे मत पूछो।
[अनुशीर्षक में जारी...]-
एक नाव लाती है तुम्हें इस शहर की तरफ,
एक शाम ले जाती है मुझे मेरे घर की तरफ।
यही सोचता हूँ कि मैं वहाँ हूँ भी या नहीं,
मैं उड़ा जा रहा हूँ किधर की तरफ?
मैं मुशरिक हूँ ये किसने तय किया होगा,
किसका ध्यान गया होगा इस ख़बर की तरफ।
शाख से पत्ते झड़ते हैं शायद अपनी ही मर्ज़ी से,
लौट आते हैं कुछ वक़्त बाद शजर की तरफ।
सारे ज़ुर्म अंधेरे में करती है दुनिया 'रुस्तम',
और शब-ओ-रोज़ देखती है सहर की तरफ।
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ख़ाक हुआ मैं चिंगारी भी आग लगा सकती नहीं,
ये क्या हुआ कि ज़िंदगी अब मौत से डरती नहीं।
मर मर के भी कैसे जिंदा रह गया किरदार मेरा,
ये मेरी मौत ही है जो मुझमें कभी मरती नहीं।
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