मिलजुल कर एक परिवार तभी तक चलता है जब तक दिल से काम लिया जाता है,
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जब दिमाग काम करना शुरू करता है ...
परिवार बिखर जाते हैं
'खास'-
साथी खो चुकी ....वो अकेली ....
देखा है उसे ....अपने अंतर्मन को मजबूत करते हुए
नाज़ो नखरों को छोड़, "मां से पिता में" बदलते हुए
बिखरने के बाद खुद को समेटते हुए
छुपा कर आंखों के कोरों की नमी को ,
होठों पर मुस्कान सहेजते हुए
देखा है उसे ,
बच्चों को मजबूत दिखाते हुए,
पिता से बढ़ कर उन्हें आगे बढ़ाते हुए
देखा है पापा की छुईमुई सी बिटिया को,
पहाड़ सी मजबूत बनते हुए.........
सच , देखा है उसे ....
रश्मि 'खास'-
बहुत किए नखरे कि ये ठीक नहीं है
ये नहीं होगा, वो नहीं होगा
पर अब हर बात भाने लगी है
लगता है उम्र अब बुढ़ाने लगी है
सूट भी सिलवाते तो फिटिंग खराब कर दी
अब तो ढ़लमक ढ़लमक सुहाने लगी है
लगता है उम्र अब बुढ़ाने लगी है
कहीं भी कुछ भी रख देने पर
कितना सुनाते थे हम
हर चीज परफेक्ट हो, बताते थे हम
अब तो खुद ही लाने लगे हैं
क्या गलत क्या सही
सब भुलाने लगे हैं
दिखावा छोड़ अब कंफर्टेबल ज़ोन में
आने लगी है
लगता है उम्र अब बुढ़ाने लगी है
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मैंने देखा है तुम्हें ....
अपने अंतर्मन को मजबूत करते हुए
नाज़ो नखरों को छोड़,
मां से पिता में बदलते हुए
बिखरने के बाद खुद को समेटते हुए
छुपा कर आंखों की नमी को
होठों पर मुस्कान सहेजते हुए
देखा है तुम्हें ,
बच्चों को मजबूत दिखाते हुए
पिता से बढ़ कर उन्हें आगे बढ़ाते हुए
देखा है तुम्हें....
..... रश्मि 'खास'-
काश झूले सी होती ये जिंदगी
आगे जा पीछे लौट आते हम
मन पीछे के लिए कसमसा रहा है
पर समय है कि आगे ही जा रहा है
अभी तो 24 आया था...आधा बीत चला
क्यों इतनी रफ्तार दिखा रहा है
लगता है कल की ही बात है
जब गठरी सी सिमटी आई थी नए संसार में
अब 55 वां साल भी चिढ़ा रहा है
समय बीत रहा....जता रहा है
मन करता है थाम लूं समय की डोर को
पर ये मांझा तो हाथ नहीं आ रहा है
ये वो मुनीम है जो थूक लगा दिनों को
आगे बढ़ा रहा है
.... रश्मि 'खास'
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संकल्पों का संबल ले कर नव पथ पर प्रस्थान करें हम
नई ऊर्जा भर कर तन में मंजिल का आह्वान करें हम-
मेरे राम तुम्हें फिर से आना होगा,
बुराई पर विजय पताका,
फिर से फहराना होगा।
त्रेता से रावण अब भरे पड़े हैं,
एक को मारो, लाखों फिर से खड़े हैं,
सतयुग का सपना फिर से संजोना होगा,
मेरे राम तुम्हें फिर से आना होगा।
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मैं मनमौजी ....मौज करूं
ना मिले तो खोज करूं
ये एक दिन नही करनी है,
मैं तो इसको रोज करूं
मैं मनमौजी मौज करूं
आंखों में सब की बसती हूं
नदियां सी दिल में बहती हूं
दुख अगर आए किसी पर
मैं पत्थर बन, सहती रहूं
मैं मनमौजी मौज करूं
आएं मुसीबत, पर डटी रहूं
अपनों के आगे झुकी रहूं
वे ही मंदिर वे ही काबा
वे खुश, तो मेरा नसीब जागा
दिल की कहूं और दिल की सुनूं
मैं मनमौजी मौज करूं
ना मिले तो खोज करूं
.... रश्मि 'खास'
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