जब सत्ता पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक
पहुँच जाए।
जब आपकी योजनाएं व्यक्ति के जीवनोपयोगी हो
जब आपकी समस्त योजनाएं समाज के अंतिम व्यक्ति तक
पहुँच जाए।
जब आपका न्याय शुल्क विहीन हो
जब आपका न्याय समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुच
जाए।
जब समाज के अंतिम व्यक्ति को भी रहने, खाने, पीने,
जीने
उठने, जागने, सोने हक मिल जाये।
वस यही राम राज्य है मेरी नज़र में
✍️रोविन-
असंतुष्टता ही सन्तुष्ट होने की कहानी है।
सन्तुष्ट हो गए तो सफलता खत्म।
इसलिए असन्तुष्ट होना ही जरूरी
किन्तु असन्तुष्ट का मन तो डोलता रहता है।
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तुम हमारी शख्सियत क्या हिलाओगे
हमने अपनी तकदीर खुद लिखी है।
✍️रोविन-
प्रकृति
कोई भी दिक्कत या परेसानी तुरंत ही नही आती अपितु
उसको लाने के लिए पहले से प्रयत्न करने शुरू कर दिए जाते है
या फिर कहें कि उसके बीज पूर्व में ही बो दिए जाते है।
उदाहरण के तौर पर पेड़ पौधों का काटा जाना और हर घर मे वातानुकूलन का उपयोग पूर्व में किया जाने लगा लेकिन अब कुछ वर्षों बाद परिणाम आना शुरू हुए है कि।
प्रकृति का तापमान 2 डिग्री बड़ गया है कहीं गर्मी बहुत पड़ने लगी तो कहीं सर्दी ज्यादा, कहीं बरसात का ज्यादा होना तो कहीं विल्कुल भी नही।
अतः ये प्रकृति से सीधे तौर पर छेड़छाड़ है जो प्रकृति को वर्दाश्त ही नही और हम दिन व दिन करते जा रहे है।
अभी नही सुधरे तो एक दिन महामारी और महाप्रलय का इंतज़ार करो।
✍️रोविन-
माँ
कोई ग्रंथ या किताब पढ़ लो।
भला माँ के लिये भी कोई परिभाषा होती है क्या????
जबकि माँ तो एक अथाह और अनंत के
साथ साथ अद्वितीय है।
माँ को किसी मदर्स डे के साथ तोला नही जा सकता।
माँ तो एक शांति और वात्सल्य का प्रतीक है।
जबकि माँ तो हर समाज और हर जीव में विद्वान है।
फिर चाहे मनुष्य हो या जानवर या जीव
खैर माँ का वात्सल्य और धैर्य कभी कम या
खत्म नही होता फिर चाहे संतान अपनी हो या पराई।
माँ तो खुद व खुद एक व्रह्माण्ड है जिसकी कल्पना या
अथाह जानना इन कवियों, इसरो या नासा के हाथ मे नही।
मातृत्व को सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
✍️रोविन-
साहब वो नही होता
जो अपने कर्मचारियों या अपने से छोटे पद पर
कार्यरत कर्मियों का शोषण करे , उनके निजी जीवन
की खुश हाली छीने या उन को खुश रहने ही न दे।
अपतु साहब वह व्यक्ति होता है जो कि स्वयं की
न सोच कर अपने कर्मचारियों के हित, जीवन और खुशी
की सोचे इससे कर्मचारियों में साहब के प्रति
सम्मान, दया और कम्पनी के प्रति सत्यता और कार्यशक्ति
के साथ साथ कार्यशैली भी बढ़ती है।
किन्तु ,कुछ साहब तो साहब कहलाने के नाम पर ही
कलंक है खैर साहब की साहब गिरी ज्यादा नही चलती
एक शेर को सवा शेर आता ही है।
साहब एक राजा की तरह होता है जो प्रजा के लिए
समर्पित और प्रजा की भलाई के लिए होता है।
किन्तु सम्मान पात्र साहब वही है जो कर्मियों की
सुने ,समझे और सोचे।
जो साहब अपने कर्मचारियों का दिल नही जीत सकता
वो साहब कर्मचारी की कार्यशक्ति में उत्साह नही भर
सकता अतः निष्क्रिय साहब होने के साथ साथ
असफल साहब कहलाता है।
मेरी नज़र में साहब का साहब होना ही गलत है।
साहब का स्वभाव रौद्र नही नरम होना।-
सुनो
भले ही ये मेरा शहर है
किन्तु
इसके ज़र्रे ज़र्रे, कण कण,
हवा, मिट्टी, पानी, रोशनी
खुशबू, जहन, जिकर,
फिकर,
में बस तुम ही तुम हो-
ज्यादा कुछ क्या कहूँ नही जानता।
दिल के कोने में तो नही खैर
पूरा दिल हो तुम।
तुम्हारे आने से, मुस्कुराने से
प्यार से बतियाने से और खास कर के
बत्तीसी निकाल कर हंसने से
और धडकने लगता है।
कभी वक़्त मिले तो देखना जरूर
पूरे दिल पर तुम्हारा ही कब्जा हुआ बैठा है।
खैर , यह गोआ में तुम्हारा ही इंतज़ार है,
फिर एक हाथ तुम देना लेफ्ट वाला और
एक हाथ मेरा राइट वाला मिल कर
अंगुलियो से दिल को बना कर पूरा करेंगे।
✍️ रोविन
मेरी धर्मपत्नी को समर्पित-
प्रिय धर्मपत्नी
वो घूंघट में मम्मी से छुप कर
हमें आंख मरना।
वो सुबह से मेरे चेहरे पर अपनी
गीली ज़ुल्फ़ों को बिखेरना
वो चुपके से मेरी तरफ मुस्कुराना
वो मेरे कपड़े प्रेस कर के मुझे
राजबाबू बनाना।
वो मेरे साथ गाड़ी पर मेरे कंधे पर
हाथ रख कर बैठना।
वो हमें गुद गुदी मचाना
वो हमें चुटी काटना।
तुम याद आती हो खैर तुम मायके में हो
-
उसकी बस इततु सी, चिन्नी सी
हंसी , फिक्र, जिक्र के लिए हम।
2200 km दूर गोआ से घर चले आते है।-