कवि की कवयित्री
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मैं कविधर तुम्हारा, मेरी कविता हो तुम।।
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आज तुममे ख़ुद को देखा है,
कुछ नया-पुराना लेखा है ।
गीत हो गए दिनों पुराने,
तुमपे जिसे उकेरा है ।।
कवि की कवयित्री-
है समझे तुम्हारे इशारे,
कुछ छिपी-छिपी सी रागिनी,
नाम हमारा लिख दो अब तुम,
प्यार लिख रही चाँदनी ।।
साथ,रात भर गीत तुम्हारे,
प्रेम दिवस पर लिखता जाऊँ ।
फूलों के गुलशन में छिपकर,
चाँद, रात भर दिखता जाऊँ ।।
देखो मेरी आँखों में अब,
सुबह लिख रही रागिनी ।
नाम हमारा लिख दो अब तुम,
प्यार लिख रही चाँदनी ।।
कवि की कवयित्री-
फूलों के पीछे तेरा छुप जाना,
कलियों सा यूँ मुस्कुराना ।
प्यार तुझे हार बार है करना,
नाम तेरा दोहराना ।।
कवि की कवयित्री-
शब्द हैं, पर सुर नहीं।
याद है, पर तुम नहीं।
गीत है, उस प्रीत में,
साँझ की हर रीत में।
कवि की कवयित्री-
कुछ नहीं, बस
एक तरफ का प्रेम, और
एक तरफ का प्यार,
मुझे हर बार हरा देता है।
जीत,
हाँ, जीत
कभी मिलेगी प्रेम में...?
कवि की कवयित्री-