Roushan Ara  
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Joined 13 May 2020


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Joined 13 May 2020
10 NOV 2024 AT 15:45

मेरी मोहब्बत कि शिद्दत पे यूं शक ना किया कर
ख़्वाबों में तिरा दीदार भी हम बा-वज़ू किया करते हैं।

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2 NOV 2024 AT 0:34

ज़िंदगी बहुत पीछे छूट गई है अए दिल
तू धड़कता जा रहा है यूं ही सांस लेते लेते।

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2 NOV 2024 AT 0:14

ये रंग और रौनक़ नहीं भाती अब हमें
अब ख़ुद को आईने में देखना छोड़ दिया।

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1 NOV 2024 AT 23:12

खो सी गई है ज़िंदगी जीने कि चाहत में
हम लुट ते चले गए किसी को पाने कि चाहत में।

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19 OCT 2022 AT 11:38

यूं ना देख मुझे बे ज़ुबां की तरह
मैं छाई हूं खुद में सन्नाटे की तरह ।

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28 JUL 2022 AT 11:13

दिदार ए इश्क की अब तलब नहीं रही
महसूस करने पर सांसे महक जाती हैं।

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12 JUL 2022 AT 14:16

खुद को ना ढूंढ सके ज़िंदगी भर तलाश किस की थी
पूरी ज़िंदगी थे जिए फिर कंधों पर लाश किस की थी।

सफ़र कुछ ही दिनों का है परेशान न हो ज़िंदगी
जाना ख़ाली हाथ है तो फिर आस किस की थी।

सहरा में भटके थे कभी एक बूंद पानी के लिए
सागर है बाहों में तो फिर प्यास किस की थी।

सहर ओ शाम रहा दिल में तू इंकलाब गोया
दिल ए बेताब तो फिर मौज ए बहार किस की थी ।

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20 JUN 2022 AT 15:24

तारीफ़ ना किया करिए मेरी मुझे अच्छा नहीं लगता
नज़रों से नज़र ना फेरिये मुझे अच्छा नहीं लगता।

हर कोई है अदाकार यहा अपनी अपनी ज़िंदगी में
हर इंसान अपनी शक्सियत में सच्चा नहीं लगता।

दिन गुज़रे रातें भी कटी इंतज़ार में किसी की
आसमां रोया या ज़मी अफसूर्दा पक्का नहीं लगता।

बरसातों के मौसम थे हिज्र का मौसम भी आया
भीगे हुए थे हम फिर भी मेरा मकान कच्चा नहीं लगता।

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29 MAY 2022 AT 13:58

मुस्कुराता हूं आलम में तेरे तसव्वुर के
मगर हैं आंखें ये नम भूल जाता हूं।

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23 MAY 2022 AT 11:12

जलते हुए अंगारों में अफसाने कहां ढूंढे
चलती हुई राहों में अब पैमाने कहां ढूंढे।

वो रात कुछ अलग थी तेरे तसव्वुर की
जो गुज़र गये यू ही वो तराने कहां ढूंढे।

खुद की तलाश है अब मुझे यहां भीड़ में
इस गुमां में हूं अब मुझे ज़माने कहां ढूंढे।

चांद सूरज भी हैं आसमां में तारे भी हैं
जो दिल को सुकून दे वो नज़ारे कहां ढूंढे।

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