एक तू ही तो है ०
जो मुझे अपनों से भी ज्यादा अपना लगता है!
अब तू ही बता ०
क्या अब भी में तेरी नहीं?-
मन आज तू खाली सा क्यूं हैं?
तू तो समुन्द्र सा गहरा है
तू तो अम्बर सा फैला है००
तुझमें तो चंचलता का ब्रह्माण्ड है
मन आज तू खाली सा क्युं है?
तू ही तो है जिससे मै रूबरू होती हूं
तुझमें ही तो मैं अपना अक्स पाती हूं००
तुझसे ही मै स्वतंत्रता की उड़ान भर पाती हूं
तुझसे ही तो मैं स्वतंत्रता को जी पाती हूं
तू ही बता
मन आज तू खाली सा क्यों हैं?-
नभ को निहारने से
चांद तारे मिलते नहीं,
तोड़ो अपनी सीमाओं को
खुद को और काबिल करो,
चल एक उड़ान और भरे
एक मौका दे और खुद को,
ना निराश हो जिंदगी से
ताकत दो अपने पंखों को,
चल एक उड़ान और भरे-
स्त्री तुम स्वाभिमान का गहना पहनों,
स्त्री तुम आत्मसम्मान की चुनर ओढो००
अपने व्यतित्व को
स्वाभिमान और आत्मसम्मान से सिंचो,
हे स्त्री स्व का स्व के लिए श्रृंगार करों००-
इंसान को छोटी छोटी बातें,
संभल कर बोलनी चाहिए...
जनाब,
ठोकर पत्थर से लगती है.
पहाड़ों से नहीं...-
यह दो पल की दोस्ती न थी...
इसे समेटने में दिन घण्टे मिनट,
और सेकेण्ड लगे थे जिसे,
तुम लोगो ने दो पल में माप दिया...
क्या सौदा किया इन पलों का तुमने,
एक बार कह के तो देखा होता,
हस्ते हस्ते खामोश हो जाते...
सौदा किया भी तो मेरे,
स्वतंत्र और चंचल मन का,
मन में न गिला थी न ईस्या,
यह दोस्ती दो पल न थी...-
नियत और सोच अच्छी होनी चाहिए००
जनाब,
बातें तो हर कोई अच्छी कर लेता है०००-