Roshan Singh   (Singh)
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Joined 28 April 2019


Joined 28 April 2019
18 JUN AT 13:47

बुजदिलों की बातेँ करते करते
बुजदिली पर उतर आए हो
मैंने दो चार बातें क्या कहीं
तुम मारने मरने पर उतर आए हो
मैंने जब तक पड़े कसीदे तुम्हारे हक़ में
तब तक सब ठीक था....
मैंने पर्दे हटाये तुम तो औकात पर उतर आए हो

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9 JUN AT 10:25

हमे मुहब्बत है जता नहीं सकते....
उसे अपना तो समझते है
पर बता नहीं समझते
और इन इश्क इश्क के बीच में कुछ कशमकश भी है
और मसला भी की हम छीन तो सकते है
हाथ फैला कर मांग नहीं सकते

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9 JUN AT 10:22

तुम्हें पता है मुहब्बत में क्या कुछ सहना पड़ता है....
तकलीफें झेलनी पड़ती है,
चुप रहना पड़ता है,
और सिर्फ एक शख्स से दिल लगाने में क्या मसले होते हैं...
सुबह वही से शुरु होती है
शाम तक फिर वहीं पहुचना पड़ता है!

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9 JUN AT 10:20

मैंने उसे उतना बताया जितना बताया जा सकता था....
हाल-ए-दिल जैसा का तैसा थोड़ी बताया जा सकता था,,
लोग दुखती नसों को दबाकर देखने के बड़े शौकीन हो चले हैं...
तुम्हारे शौक के लिए अक्षांतर देशांतर थोड़ी बताया जा सकता था,,
जरूरी है मुहब्बत में, होना मौहब्बत का..,
हाँ इश्क है तुमसे!
पर सारा प्यार तुम्हीं पर थोड़ी लुटाया जा सकता था,
हमें औरों को भी तो बांटना है प्यार, उनके उनके हिस्से का,
सबके हिस्से का प्यार तुम्हीं को थोड़ी दिलाया जा सकता था...
मैंने उसे उतना बताया, जितना बताया जा सकता था

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9 JUN AT 10:18

एक मैं हूँ मुझे डर है मुकद्दर तबाह हो जाने का
एक वो है जो खुद मुक़द्दर बनाता है
एक मैं हुं मेरी अपनों तक से नहीं बनती
एक वो है गैरों से यारी निभाता है
मैंने सोचा था वक़्त बदलेगा तो तस्वीर बदलेगी
मुझे पता चल रहा है वक़्त बदलता नहीं बदलना सिखाता है
मेरी आँखों में लोग उसके लिए मुहब्बत देखते हैं
और वो मुझे ज़माने में फरेबी बताता है
एक मैं हूँ मुझे डर है मुकद्दर तबाह हो जाने का
एक वो है जो खुद मुक़द्दर बनाता है

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29 APR AT 15:20

sabke girne ka mosam aata hai dada,,,, yakeen na ho to patton se pucho.

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29 APR AT 15:18

एक अर्से बाद मिलना तय करेगा मोहसिन......
कमी किस के किरदार में थी

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4 APR AT 16:56

कुछ एक पन्नों की किताब है,
वैसी ही हू वा हू जैसे कोई शख्स या शख्सियत अपनी जुबान के ईस्तेमाल से कह रहा है,
हू वा हू जैसे लिखा गया है डायरियों में एक-एक शब्द रातों को दिनकर करते हुए, जागते हुए किसी वजह से या शायद बेवजह...
अपने लिये या फिर दुनियाँ के लिए, जिसके एक-एक हर्फ पर पीएचडी लिखी जा सकती हैं जिसकी एक-एक कलम से लाख सीखा जा सकता है, जीतने का हुनर और शायद जीने का भी और बदला जा सकता है घनघोर अंधेरे को सुर्ख उजालों में....

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4 APR AT 12:12

पढ़िए! क्योंकि पढ़ने से सीखने तक के सफर का नाम ही शिक्षा है शायद जीवन भी है!

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1 APR AT 21:39

जीत जाने में एक मसला तो हमेशा रहेगा .....
जीत का तबका हमेशा तुम्हारा थोड़ी रहेगा

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