इन भँवरों में कश्ती को कोई तो किनारा मिल जाए
हम मुसाफ़िर चले जा रहे हैं नंगे पाँव
इस तपती धूप में कुछ तो सज़र का बसेरा मिल जाए
यूँ तो गिर कर शँभले हैं कई दफा खुद में ही
इन डगमाते कदमों को कोई तो सहारा मिल जाए
उठा है शोर जज्बातों का दिल में इस कदर
इस कँपकपाती होंठों को कोई तो इशारा मिल जाए
मेरे नाम कर दी उसने अमावस की काली स्याह रात
कभी तो चाँदनी रातों का थोड़ा सा उजाला मिल जाए
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