Roshan Raj  
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Joined 24 February 2019


Joined 24 February 2019
17 NOV 2022 AT 19:52

किसे पता था अंजाम-ए-मसरूफियत क्या होगी
दिल खाक और ज़िंदगी तन्हाइयों में बसर होगी

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29 OCT 2022 AT 11:05

इन भँवरों में कश्ती को कोई तो किनारा मिल जाए
हम मुसाफ़िर चले जा रहे हैं नंगे पाँव
इस तपती धूप में कुछ तो सज़र का बसेरा मिल जाए
यूँ तो गिर कर शँभले हैं कई दफा खुद में ही
इन डगमाते कदमों को कोई तो सहारा मिल जाए
उठा है शोर जज्बातों का दिल में इस कदर
इस कँपकपाती होंठों को कोई तो इशारा मिल जाए
मेरे नाम कर दी उसने अमावस की काली स्याह रात
कभी तो चाँदनी रातों का थोड़ा सा उजाला मिल जाए

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15 OCT 2022 AT 8:39

जहाँ धरती और अंबर का मिलन हो
उस क्षितिज तक फैली है
मेरे हिज्र-ओ-बेसबर
तेरे जहन-ओ-मिजाज़ तक फैली है

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27 SEP 2022 AT 3:31

फ़िर से एक ख़्वाब ने दस्तक दी है
लगता है फ़िर आंखें नम होने को है

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24 SEP 2022 AT 8:23

ज़रा हमे भी बताओ ये राज़-ए-वफ़ा क्या है
तुम जो लिखते हो उसकी वजह क्या है

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27 AUG 2022 AT 4:37

जला ली सिगार मैंने उलझनों में
सोचा कुछ फिक्रों को धुआँ धुआँ किया जाए...

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26 AUG 2022 AT 3:07

हवा में घुलती खुशबू बता रही है
उसने अपनी जुल्फें खुली छोड़ रखी है...

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1 JUN 2022 AT 17:52

दुशमनों की गली से निकल आया सही सलामत
कत्ल तो उसका अपनों की बस्ती में हुआ

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4 MAR 2022 AT 16:18

मैं हूँ एक आवारा बादल
मुझे लोगों के हवस की प्यास से नहीं है मतलब
मैं खोया हूँ इस कदर तुझमें
मुझे अपने आप से लगता है रहा नहीं कोई मतलब
मैं जीयूँ या मरूं इस से तुम्हे क्या
तुम्हें तो नहीं है मेरे किसी हाल से मतलब
अब मेरा जिक्र नहीं है उसके जुबां पर
लगता है निकल गया है मुझसे उसका भी मतलब
ये कौन है जो मुझपे तरस खाते हैं
यूँ तो यहाँ किसी को नहीं है किसी से कोई मतलब

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3 MAR 2022 AT 17:48

ख़ामोशी बहुत कुछ कह गई
उनकी भी....
मेरी भी....

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