धूप हो या छाव तुम्हें हर पल साथ पाया हैं,मुझसे बेहतर मुझे बस तुमने समझ पाया हैं।। -
धूप हो या छाव तुम्हें हर पल साथ पाया हैं,मुझसे बेहतर मुझे बस तुमने समझ पाया हैं।।
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ज़िंदगी भर ज़िंदगी ढुंढता रहा मैं,तुमसे मिलके मुक्कमल हुई, अब यही बंदगी हैं। -
ज़िंदगी भर ज़िंदगी ढुंढता रहा मैं,तुमसे मिलके मुक्कमल हुई, अब यही बंदगी हैं।
ये जिंदगी हैं।।धूप भी हैं,छाव भी हैं,ये जिंदगी हैं,यहां कई पड़ाव भी हैं।।हंसी भी हैं,आंसू भी हैं,ये जिंदगी हैं,यहां कई तनाव भी हैं।।अपने भी हैं,पराए भी हैं,ये जिंदगी हैं,यहां कई अपने पराए भी हैं।। -
ये जिंदगी हैं।।धूप भी हैं,छाव भी हैं,ये जिंदगी हैं,यहां कई पड़ाव भी हैं।।हंसी भी हैं,आंसू भी हैं,ये जिंदगी हैं,यहां कई तनाव भी हैं।।अपने भी हैं,पराए भी हैं,ये जिंदगी हैं,यहां कई अपने पराए भी हैं।।
Shiv or Shakti,हो सती भी तुम, शक्ति भी तुम,हैं शिव आदि और अंत,तो मुक्ति हो तुम।।हैं शिव महाकाल और गंगाधारी,तो तुम हो शक्ति पालनहारी,शिव और शक्ति का मेल निराला हैं,एक जलता जोत में तो दूजा तांडव करने वाला हैं,शिवशक्ति हो साथ तो कोई संकट ना टिकने वाला हैं।। -
Shiv or Shakti,हो सती भी तुम, शक्ति भी तुम,हैं शिव आदि और अंत,तो मुक्ति हो तुम।।हैं शिव महाकाल और गंगाधारी,तो तुम हो शक्ति पालनहारी,शिव और शक्ति का मेल निराला हैं,एक जलता जोत में तो दूजा तांडव करने वाला हैं,शिवशक्ति हो साथ तो कोई संकट ना टिकने वाला हैं।।
कुछ राज़ हो तो तुम्हें बताएं,जिंदगी खुली क़िताब हैं, इसमें कोई क्या ही छुपाएं।।— % & -
कुछ राज़ हो तो तुम्हें बताएं,जिंदगी खुली क़िताब हैं, इसमें कोई क्या ही छुपाएं।।— % &
कुछ पल पहले थे अजनबी, आज जीवन साथी है, खुदा की देन हो तुम, की तुम्हारे होने से अब जिंदगी मुस्कुराती है।।— % & -
कुछ पल पहले थे अजनबी, आज जीवन साथी है, खुदा की देन हो तुम, की तुम्हारे होने से अब जिंदगी मुस्कुराती है।।— % &
व्रत करती वो मेरे लिए,उसकी हर मन्नत में मैं हूं,उसे ये पता नहीं की दुनिया है वो मेरी,और उसकी हर सांस में मैं हूं। -
व्रत करती वो मेरे लिए,उसकी हर मन्नत में मैं हूं,उसे ये पता नहीं की दुनिया है वो मेरी,और उसकी हर सांस में मैं हूं।
दर पे उनके हमनें सर झुकाना छोर दिया,तो उनके लिए हम काफ़िर हो गए।।उन्हें क्या पता अपना जीवन बनाने निकल पड़े,हम मुसाफ़िर हो गए।। -
दर पे उनके हमनें सर झुकाना छोर दिया,तो उनके लिए हम काफ़िर हो गए।।उन्हें क्या पता अपना जीवन बनाने निकल पड़े,हम मुसाफ़िर हो गए।।
शीसे की दीवार के पीछे छिपे बैठे हैं लोग,नक़ाब-ऐ-इंसानियत पहने बैठे हैं लोग,के सरे आम बेआबरू करते हैं नारी को,और घर में भगवान बने बैठे है लोग।। -
शीसे की दीवार के पीछे छिपे बैठे हैं लोग,नक़ाब-ऐ-इंसानियत पहने बैठे हैं लोग,के सरे आम बेआबरू करते हैं नारी को,और घर में भगवान बने बैठे है लोग।।
दूसरो की खुशियाँ छीन,रोशन करते हैं घर अपना,लगता हैं, वो जमींदार हो गए।। -
दूसरो की खुशियाँ छीन,रोशन करते हैं घर अपना,लगता हैं, वो जमींदार हो गए।।