तकदीर बनाने वाले ने , ये कैसी नाइंसाफी की
दोनो आंखे मूंद के उसने शायद मेरी किस्मत लिखी-
तू कुछ तो बोल मेरे कान तेरे जवाब को तरस रहे हैं
ये बेचैन सी दों आंखें मेरी तेरे ख़्वाब को तरस रहे हैं
इस lock down से मुझे ज्यादा फ़र्क तो नहीं पड़ा
बस ये हुआ कि मेरे प्यासे लब शराब को तरस रहे हैं-
तूम कॉलेज पढ़ने वाली हो , मैं पांचवी पाँच बार फैल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
मैं नारियल तेल का डिब्बा हूँ , तू बजाज आमला तेल प्रिये
मैं दर दर ठोकर खाता हूँ और तेरी लगती सेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये प्यार नहीं है खेल प्रिये
मैं टूटा फूटा जर जर पूल , तू तेज रफ़्तार की रेल प्रिये
मैने बरसों तुझको झेला है अब तू भी मुझको झेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये प्यार नहीं है खेल प्रिये-
सब अपने में ही खोए हैं किसके साथ गुज़ारें शाम
भीड़ में भी तन्हा ही रहते आजकल हर खास ओ आम
छूट गए वो बचपन वाले साथी सारे राहों में
जिस दिन से हम बड़े हुए हैं दिल है तब से बेआराम-
वो लड़की है या कि परी है क्या क्या ना उसके पास है
गुड़ शक्कर या शहद से ज़्यादा लबों में उसके मिठास है-
एक विस्फोटक सी सामग्री सब के दिल में ही फटा है
सब यारों के आसमान में एक ना एक दुख की छटा है
कोई ख़ुद कैसे बतलाए क्या क्या उसके साथ हुआ
जो जितना चौड़ा बनता है उसका उतनी बार कटा है-
दिये की तरह दिल का जलना जरूरी है
कौन कहता है इश्क़ मे मिलना जरूरी है
जब भी वो याद आए लिख कर पढ़ लो उसे
हां मगर इसके लिए थोड़ी कल्पना जरूरी है-
मां हिन्दी की प्रतिष्ठा , गौरव और मान बढ़ाने ख़ातिर
टैगोर कभी तो पंत , निराला , बच्चन कभी कुमार हुआ-
ज़िद को तुमने अपनी , अरमानों का मेरे क़ातिल बना दिया
और इधर शौक़ ए विसाल ए यार ने मुझको पागल बना दिया-